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अंधाधुधीमां बहु राजी, करे निजगुणनी झट हाणीरे, सत्य. ३ सत्यकृत्यनुं नाम न जाणे, मची रही स्वारथमां खालीरे.सत्य. बुद्धिसागर सत्य धर्ममा, लयलीन थया अहो ज्ञानीरे. सत्य. ४
पत्र संदेशो.
हरिगीत छंद चाल. जा शिष्य पासे पत्र प्रेमे सत्य वात जणावजे, उंडी असर करी चितमा वळी स्वात्म सन्मुख आवजे; नहि अज्ञनो तो प्रेम साचो प्रेम शुं पर द्रव्यमां, छे आत्म साक्षी प्रभूपयोगे प्रेम छ निज द्रव्यमां. शा हेतथी राची रहे छे प्रेम घेलो थई अरे, संयोग त्यां वियोग अंते न्याय साचो मन खरे; उच्च चेतन धर्म करवा उच्चता दिल वारीए, परमात्म साथे प्रेम जोडी विषय सर्व विसारीए. सहु जगत् जीवने उच्च गणवा नीच गणवा नहि कदी, उच्च ध्याने उच्च थाशो उदधिमां जेवी नदी; सहु जीव साथे मित्रताने राखवी ज्यां त्यां अरे, माध्यस्थता राखो हृदयमा दोष सघळा दुर हरे. दोषीना पण दोष टाळो निन्द्यदृष्टि टाळीने, आनंद पामो सन्त देखी चित्त अन्तर वाळीने कारुण्यता गंगा नदीमा स्नान निशदीन कीजीए, ने स्वात्मदृष्टिकाशी पामी हृदयथी खूब रीजीए.
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