Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 04
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 290
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २६१ मोह अब्रह्म निवारण तारण तरण जिहाज, जंबुकुमर गुण थुणतां जन्म कृतारथ आज. होय जस वदने शत सहस जिहा, आउखु बळी असंख्पात दीहा; तास पणि जंबु मुनि सुगुण गातां, पार नावे सदा ध्यान ध्यातां. शील सलिल जे पाले वाले चंचळ चित्त, आप शक्ति अजुवाले त्रिहु काले सुपवित्त; पाप पखाले टाले मोह महामदपूर, ब्रह्मरूप संभाले ते निज सहज सनूर. एहवा जंबु मुनि पुरुष सिंह, जेहनी कोय लोपे न लीह; भवतर्या शील सम्यक्त्व तुंबे, स्त्री नदी मांहि ते केम विलम्बे. सोहमवयणे जागी वयरागी सिरदार, सोभागी वडभागी मागी अनुमतिसारः मातपिता प्रतिबुजवे आठ कन्या उपरोध, करणी परणी तरुणी जीपे मन्मथरोध. आठमदनी महा राजधानी, आठ ए मोह माया निशानी; जगवशी करणनी दिव्य विद्या, कामिनी जयपताका अनिंद्या. मुख मटके जगमोहे लटके लोयण चंग, नव यौवन सोवन वन भूषण भूषित अंग; For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 20 ४ S

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