Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 04
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 294
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आणा विणा आचारमांहि आणे, अनाचार; जंबु प्रते इम सोहम कहे अंगे आचारः ज्ञान किरियातणा इम अभ्यासी, हुइ चिदानन्द लीला विलासी स्थानवर्णार्थ आलम्ब अन्य, योग पांचे हुआ जंबु धन्य. वली इच्छा प्रवृत्तिने थीरवली सिद्धि ए भेद छ चार, मीति भक्तिने वचन असंग तिहां मुविचार सकल योग ए सेवी पामी केवलनाण, मुगते पुहता तेहनुं नाम जपे सुविहाण. खंभनगर थुण्या चित्त हरखे. जंबु वसभुवन मुनि चंद वरखे श्री नय विजय बुध सुगुरु सीस: कहे अधिक पुरयो मनय जगीस ॥ इति श्री यशोविजय विरचिता ब्रह्मगीता समाप्ताः॥ श्री यशोविजय वाचक कृत. आदि जिनस्य संस्कृतभाषायां स्तवनम्. आदिजिनं वंदे गुणसदनं, . सदनंतामलबोधरे; बोधकतागुणविस्तृतकीर्ति, कीर्तितपथमीवरोधरे. आ०१ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308