Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 04
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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आणा विणा आचारमांहि आणे, अनाचार; जंबु प्रते इम सोहम कहे अंगे आचारः ज्ञान किरियातणा इम अभ्यासी, हुइ चिदानन्द लीला विलासी स्थानवर्णार्थ आलम्ब अन्य, योग पांचे हुआ जंबु धन्य. वली इच्छा प्रवृत्तिने थीरवली सिद्धि ए भेद छ चार, मीति भक्तिने वचन असंग तिहां मुविचार सकल योग ए सेवी पामी केवलनाण, मुगते पुहता तेहनुं नाम जपे सुविहाण. खंभनगर थुण्या चित्त हरखे. जंबु वसभुवन मुनि चंद वरखे श्री नय विजय बुध सुगुरु सीस: कहे अधिक पुरयो मनय जगीस ॥ इति श्री यशोविजय विरचिता ब्रह्मगीता समाप्ताः॥
श्री यशोविजय वाचक कृत. आदि जिनस्य संस्कृतभाषायां स्तवनम्. आदिजिनं वंदे गुणसदनं,
. सदनंतामलबोधरे; बोधकतागुणविस्तृतकीर्ति,
कीर्तितपथमीवरोधरे. आ०१
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