Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 04
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 293
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीठि गलाबइ छोरडी बोरडी पाकी जेम, जंबुकुमार ते लेखवे कोरडी दोरडी तेम; विश्व वशीकरणथी जेह सबला, तेहनो नाम किम होइ अबला, नाम माला तणी माम राखी, जंबु धैर्य तणा' सकल साखी, आठ कन्या आप ते जननी जनक समते, चोरी करवा आव्या ते चोरने प्रभव सहेत; ए सवि दीक्षा ओदरी विचरी उग्र विहार, जंबु ते पूर्वधर हुआ सोहम पट्टधार. वर्ष अतिक्रमे अनुत्तर विमानी, सुर अधिक सुख लहे ब्रह्मज्ञानी. ते हुआ शुक्ल शुक्लालाभिजाति, आत्मरति आत्मधृति कर्मघाती. ब्रह्मरूप निरुपाधिक आतमज्ञान ते योग, इन्द्रजाल सम सघला पुद्गलना संयोगः उपादान पुद्गलथी पुद्गल उपचय होइ, कर्ता नहि तिहां आतमा निश्चय साखी सोइ. एह अध्यातम ते मोक्ष पंथ, एहमां जे रह्या ते निग्रंथ; एह अंत:करणे होइ सुधि बीजे, विहित किरिया तेतसाहती कीजे. नय होइ युक्ति जोता किरिया ज्ञाननी व्यक्ति, साधन फलता दोइमा साधन शक्ति २५ २६ For Private And Personal Use Only

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