Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 04
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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शृंगारे नवि माती राती रंग अनंग, अलबेली गुणवेली चतुर सहेली संग. जेहने देखी रवि चंद थंभे, बंभ हरिहर अचंभे विलंभे कवणर्नु धैर्य रहे तेह आगे, जंबुनी टेक जगि एक जागे. आठ ते भूमि भयंकर शंकर कर जित लेइ माम, श्रम करि सीखीने सज थयो फिरि जगिजय परिणाम सरव मंगलालिंगित देखी जंबु कुमार, जुजे बुजे पंडित तिहां जयभंग प्रकार. चाप जे मयण करि बाण न्हाखे, जंबुवर धैर्य सन्नाह राखे । चाप दुइ पंड हुओ भमूह ठामे, धैर्य पूजा कुसुम जंबु पामे. एणी नयनानी वेणी लेइ धायो नरवारि, ते तिहां भी दंभी सघले पामी हारि; कांनि झाल जबुके तोली रहयो मानु चक्र, तेह सुदर्शन धारीस्युं पणि न हुवे वक्र. नाकि मोती ते बंधृक छाकि, गोलिका ते रथो मांनु ताकि छुटि करि जंबु धैर्य नांह लोपे, रहे ढलती ते आमरण रूपे. दियशस्त्र हिवे फोरवे जोर माया अंधकार, जेहमांहि बंभ पुरंदरनो पणि नांहि चार;
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