Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 04
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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नमन०
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उपसर्गों सहवामा सिंह समा बळी, समभाव रहे समुद्रसम गंभीर जो; शुद्ध बाम. धरता जे अलख अभेदन, प चक्रोने भेदे योगि वीर जो. द्रव्य भावथी परवस्तुने त्यागता, निर्विकल्पने वैरागे तल्लीन जो अचळ अडोल अफंद अविकारी सदा, गुरुपरंपर आगममाहि प्रवीण जो. प्रण शल्यने तृणवत् जाणी त्यागता, गारव रस रिदिने शाता साथ जो; धर्म करण कारणने सहेजे संग्रहे, राग द्वेषनो त्याग दयाना नाथ जो. निंदा विकथा चारे त्यागे नित्य जे, कषायने तो कहाडे घरनी बहारजो वचन जेहनां पडे हृदयमा सोसरां, तत्वज्ञान ने धर्मकथानी वखार जो. चरण नावमा बेठा मुनिवर साधता, मुक्तिपुरीनो मार्ग वीकट मुखमेवजो। चार भावना मित्रादिक जे भावता, जग जंतुथी वैर शमावे देव जो. पंचमहाव्रत विशुद्धताथी पालता, गुप्ति समिति अजुआळि स्वयमेव जो; अतिचारने दूर करी ज्ञानी गुरु, पंचाचारे घरे ज्ञानामृतमेव जो. छकायना जीवोनी रक्षा बहु करे,
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