Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 04
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 288
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८४ ७ सातक्षेत्र इम बोलिलिया पुण एकु कहीसिए कर जोडी श्री संघ पासि अविणउ मागीसइ काईउऊण आगउं बोलिउं उत्सूत्रूतो बोल्यामिच्छादुकडं श्री संघ वदीतुं ॥ १५ ॥ मूं मूष तोइ ए कुण मात्र पुण सुगुरु पसाऊं अनइ जत्रिभु. वन सामि वसइ हियडइ जगनाहो तीणि प्रमाणिइ सात क्षेत्र इम. कीपऊ रासो स श्री संघु दुरियह अपहरउ सामी जिणपासो ९६ - संवत तेरसत्तावीस एमहामसवाडइ गुरुवारि आवा यदसमियहि लइ पखवाडइ तहि पुरु हूऊ रासु सिव सुख निहाणू जिगचुवीसइ भवीयणह करिसिइ कल्याणु ॥ १७ ।। ___ जो सिसिरचि गयणंगणिहि उगइ महि मंडलि ताव रतउ एउराम भवियणा जिणसासणि निम्मल जग्रह नक्षत्र तारिका व्यापई गयवंतु श्री संघ अनइ जिगसासणु ११८ ॥ ॥ इति ससक्षेत्र रास समाप्त ॥ लि० मुनि बुद्धिसागर. 13 ___ ९२ एक. ९३ भागीश. ९४ हैयडामां. ९५ कीघो. ९६ दुरित. ९७ अपहरो. ९८ स्वामी. ९९ जिन पार्थ (पार्श्वनाथ.) १०० संवत १३२७ तेरसे सत्तावीशनी सालमां आ रास रच्यो. १ जिनचोवीश. २ भविकजन. ३ कल्याण. ४ यावत् . ५ शशिरवि. ६ गगनांगणो. ७ उगे. ८ महीमंडलमां. ९ तावत् (त्यां मुधी.) १० ए रास तो. ११ जयवंतु, १२ अने. १३ जिनशासन. For Private And Personal Use Only

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