Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 04
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 286
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दणि गृहवास ऊपरि ज्ञानुना सुपसरीउ तिहुयणि ॥२॥ तिम तुम्हि वावेउ भलीपरि भविउहउ खित्तु लहिमउ लुण निरवाण नयरिति पतिहावुहूतुपहिलं कीजइ महाविनउं गुणश्रावक ज्ञानाउ जाणी पाय पोय पखोलीय सइहाविलेउ कुंकुम, वाणी ॥३॥ इईई भोजनुं भलीयभक्ति सविवेकिहि सयउ दीजइ श्राविकां पउ आगमि कहिउ उपरिउगटि फल पान कापड अनुमानिया दीजइ निजभक्ति भलागरूयइ बहुमानि ॥४॥ भद्रथेसर जिम,श्रावकह दीजइ आवास लीणाजे जिनवयणि अछइ वणहनिवास आछिलनी परि एक कीसउ परिहुइ अइस संखाविधि मानु फरसइ सहू नरनारी दुःख ॥ ६ ॥ वाछिलनी परि एकजीतहउंकहीउ नमसाकउ एकहवार सकूसारु तुम्हकहीउ अजमूकिउं जीजी कीजइ कुणबकाजिए अति भलाभलेरांतो कीजइ साहमिय प्रति अजी अधिकेरां ।। ६॥ कीधे काजे कुटंब भाण अतिघणउ संसारेउ सोरे संकीजइ साहमियकेरउन कीजइ साहमिअकाजिते परत भडारो इणपरि वाछिल श्रावकह कीजइ सुरवंगू हवते कहीइसिइ जिणभवणि वा .छिल अंतरंगू ॥ ७॥ जिणपरि लोगथाकइ ज़िम संसारमझि वलिवाल एउ फेरु कीजइ श्रावक श्राविकारोहि घरपोयषधशालजी छे करिसिइ धरमध्यान तुहरखि सविकालो ॥ ८॥ ___ षड्जीवरक्षा सदि काल तीच्छेदंसींतीसमकितसिउ बारय ७३ क्षेत्र. ७४ साधर्मिक. ७५ अतिघणं. ७६ अन्तरंग. ७७ षड्जीवरक्षा. 101 ...७० For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308