Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 04
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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२५५ खीउ, पर्युपास्ति तही कीजइ घणीय, जिमजिम जिनवरि आगमि भणीय ॥ ८९॥ . एहज परिश्रमणी जाणेवी, करउं भक्ति तुम्हि हरिख धरेवी, जेमुझ महामुनि दोजइ, तंतं श्रमणी कीजई ॥ ९० ॥ ___ आगइताइ पूर्विहि सुणीजइ, धनुधनु सारथवाह कहीजइ, घीउ विहिराविउ जिणिमुर्णिदउ, तिणि फलि हयड पढम जिणंदू, ॥ ९१॥
हथिणाउरि नयरि श्रेयसि, हियरो विउरिषु भुरिपुरिसि,तिणि फलि तिणभवि केवलु ज्ञानु, दिइतु भविक मुनि इणपरि दाना९२॥ - वीर जिणेसर छट्ठा मास, वंदण पारवेइको मास, तीणि दानि व संपति पामी, दियउ दान तम्हि अनवत धामी ॥ ९३ ॥
जोइन संगमिकीउ, मुनिपारावीउ खंड खीरु घीउ, तिणि फलि तु सर्वार्थ सिद्धि पामी, पाछइ होसिइ सिवमुहगामी ॥९॥ - इउ भल्लउ खेतू वावउ वितू , सिवसुह संपत्ती देइन भत्ति न भत्ति सामि सालु आगमि भणित्ति ॥ ९५ ॥
हिव तोइ श्रावक तणो क्षेत्तु भवी कहीसइ जउ जिण सासण तणी भूमि अति भलउ फलीसिइ किसउ सुश्रावक जाणिवउ
३८ आगेतो. ३९ पूर्वे. ४० धन्य धन्य. ४१ घी (घृत) ४२ वहेराव्यु. ४३ थयो. ४४ जिनेन्द्र. ४५ हस्तिनापुर. ४६ नगरी. ४७ केवलज्ञान. ४८ दान. ४९ दान. ५० अनुव्रतधमि. ५१ वीर. ५२ घी. ५३ शिवमुख गामी. ५४ भलुं.
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