Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 04
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 283
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . . . . ૨૩ ૨૪ पखालिङ, एउ साहू अनइ श्रमणी खित्त, बावन धामी हुईउ स. वितू ।। ८१ ॥ जा हिवडांतूं संपति अच्छइ, इसीय वरापन पामि सिप्पछइ, ज भलखेत्रि वित्त न वाविसि, पाछइ परभवि किसउ लुणाविसि, ॥ ८३ ॥ परापटली विनु वाविसि सारु, गिसिखड सलुकाइ कतवारु, जउ भलो, क्षेत्रि वरापहवाविति, तउ इक गुणइ अणंतगुण पा. विसि ॥ ८४॥ एतलं क्षेत्र जिनवरि कहिया, वावें धम्मी भावणसहिया, तउ सीचे अनुमोदनापाणी, जिमहुइ सफली गयानिरुवाणी ॥८॥ ... ईणपरि वाविजइ सुखैत्रु, दीजई भक्त पानु सूझव विद्यादा. नुज दीजई सारु, जिणु भणइ ते पुन्य नहीं पारु ॥ ८६ ॥ ओषध आदि सहु सूझउं दीनई, नियवर नियधरिहंत अनिउज काई मुनि उपगरइ, तंसूझतूं वहरउं करइ ॥ ८७ ॥ जंजमुनि जोअइ सूझतउं, तंतं दीजइ नियघरुहुँतउं, गुरु आवती कीजइ अभिगमण, दीजइ भक्ति थोभवंदणउ,॥८८ ॥ विनय वयावच्चअनीउ विशेषिउ, कीजइ भुवीउ महा मुनिदे २० धोयु, (पखाल्यु) २१ पछे. २२ परभवमा २३ शु.२४ लणीश. २५ धमि. २६ भावना सहित. २७ अनुमोदनाजल.२८ क्षेत्र. २९ मुजतुं. ३० मुजतुं. ३१ पोताना घरे होय ते. ३३जो. इए. ३३ मुजतुं. ३४ पोताना घेर होय ते. ३५ सामा अवु३६ स्थोभ वंदन. ३७ वैयासत्य, For Private And Personal Use Only

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