Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 04
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 281
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir CN इ सविलास हुइ मृग० ॥ ६७ ॥ पाठांदोरी वीटणां वरसिद्धांतहमत्ति वानीदोरा ऊतरीय मृग लोयणे पोथीय थाय सत्ति ॥ ६८ ॥ ___त्रीजउ क्षेत्रु इम वावनिरपमलियः लाभुहंता तणउजिम अकम्मगंजीउ भवदुह भंजीउ सिद्धि नयरि खेमिइ मुणउ ॥६९॥ हिव श्री श्रमण संघ भत्तिकरउजीवतुम्हियथाभक्तिपहिलाउं कीजइतोइ पावयणा अनीय विशेषिहि आयरियउ वणा७० ___ इणपरि श्रमणुक्षेत्र वावीजइ, निश्चय भवसायरु तरीजइ जे जिनवरिमुनि कहिया आगमि, क्रियासार अनइ खरतसंजमि।७१। पंचमहवयभारु धरंता, दसअनुच्यारि उपगरण वहंता, नव कल्पिइ विहार करंता, ते मुनि भणियइ चारित्त दंता ॥ ७२॥ जे मुनि पंच समितिच्छइ समिता, त्रिहिहु गुप्तिहिजे अच्छ३ गुपिता, सीलंगसहस अढावरहंता, ते मुनि भाणियइ उपसमवंता ॥७३॥ जे मुनि निम्मल निरहंकार, सदाचार दीसइ सुविथार, जे धूरिजूता गणगच्छ भारा, ते मुनि भणिया गुणह भंडारा॥७४ ॥ " ईणपरिभल्ला क्षेत्र विशेषि, दियउ दानु तुम्हि भविहरखि, जिम तु छूटउभवना भार, पामउ सिवसुखु निरुपमसारु ॥७॥ ____७८ अष्टकर्म गंजनार. ७९ क्षेमे. ८० जाणो. ८१ भक्ति.८२ करो. ८३ तीक्ष्ण संयमे. ८४ पंचमहावतभार. ८५ चौद उपकरण मुनिनां छे. ८६ इयो आदि पंचसमिति. ८७ मन, वचन अने कायगुप्तिः ८८ अढार हजार शिलांगरथना भेदने धारनार. ८९ मुविस्तार. For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308