Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 04
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 278
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. ३५ ४२. २४९ पाटल्ला चउकीर्वदि बइसति सुगुरु तउ भावइ भल्ला ।। ४७॥ बइसइ सहइ श्रमण संघ सावय गुणवंता जोया इच्छबुह भुवणि मनिहर धुपुधरंता तीछे तालारस पडइ बहु भाट पढ़ता अनइ लकुटा रस जोईइ खेला नाचंता ।। ४८ ॥ सविह सरीषा सिणगार सवितेवड तेवह तेवहा नाचा धा. मीयर भरेत उभावइ रूडा सुललित वाणी मधुरि सादि जिणगुण गायता तालमानु बंदगीत मेलु वाजिंत्र वामंता ।। ४१ ॥ ___तिविलझालरि भेरु करडि कंसाला वाजई, पंचशब्द मंगली कहेतु जिणभुवणइं च्छाजइ, पंच शब्द वाजंति भाटु अंबर बहिरंती, इणपरि उछबु जिगभुवणि श्री संघु करतउ ॥ ५० ॥ तर आरती परुगुण काउं आरती पटऊपरि उठिउ संघ परि विधिहि सहिओतउ साहीउ बिहुकार नीरलुण ऊतारियए कुसम ऊतारी संघपति ऊठी सेसिभरई सहत्थिहि माडी संघपति आर तील्लिया हुइ जउ वा वाडरीआरती जोग थांभली अआणउग रूपरी ॥ ५॥ पाछइ जिण गुणगाइ पढइ.साहू पालउल लोक श्रीसंघवीह अदातुदियइ जाह जेसाजोगू ऊतारीया आरतीआ ताइ संघपति ३४ भावे. ३५ भला. ३६ श्रावक. ३७ उत्सव. ३८. मनोहर. ३९ धूप. ४० लकुटरस (डांडीयारस) ४१ मधुर सादे. ४२ झालर. ४३ भेर. ४४ छाजे. ४५ एणीपेर ४६ उत्क. ४७ नीर लुण-जलनी साथे लुण उतारवं ते) ४८ कुमुम. For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308