Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 04
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 277
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २४८ ज्जली जाइवीजणियं ऊखेवितु गुरु तहि घंटी वाजइ ॥ ४२ ॥ ૧૧. धूप अगुरु सादेति वीरे सिद्धावडा कीजइ संदंडासणे Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 18 ૧૪ अतिरूपडे जिणभुवणु पुंजीजइ आखेरिहिंमजूसभली अन्न ૧૫ चकी वट ढोई आखे करउ भलीय मंगलीकं अठ्ठय ॥ ४३ ॥ 1f १७ वर्द्धमाणु वरकल अन १८ ૧૯ ૨૦ २१५ भदासणु छत्तु दप्पणु नंदावरतु ૨ ૨૩ तहि साथीउ श्रीवत्सु अठ मंगलीक नीणपाटि भरिया जिन आगईण परिजंधन वेचीइ एतले खइ लागइ ॥ ४४ ॥ ૨૪ ૨૫ दीवा कीज जिनभुवणि छत्र त्रउ दीजइ, चमर ढलते बीतराग तेहि धनु वेवजह तेउऊलोवकारोवियइ जिणभुण गम्भारे वाटा मखर अलंबकीज जिनबारे || ४५ ॥ तोरण बंदु खालि बारि साथि जिणभुवणि, पूजा जोइ सहु ૨૬ ૨૭ ક कोइ आवs तीणि खिणि, पूजा जोइ वा जिणहभुयणि भोइ सुह गुरु आवर तर संधिहि आग्र कहु करीउतीछे रहाविय ॥ ४६ ॥ पडषउ वेला एक प्रभु अहांउच्छ होसिइ संघ वयणुमाने ૨૯ 30 ૩૧ ૩૨ 33 वि सुगुरु तिसि सिखं पइसई तिथि वेलां बइसणां पाटि जोइ १२ संदंडासणे. १३ जिनभुवन. १४ पुजीए. १५ मंगलीक आठ, आठ मंगलनां नाम १६ वर्धमान. १७ वरकलश. १८ भद्रासन. १९ छत्र २० दर्पण २१ नंदावर्त २२ साथियो, २३ श्री वत्स ए आठ मंगलनां नाम छे २४ छत्रत्रय २५ जिनभुबन गमारे. ५६ आवे. २७ ते क्षणे २८ जिनभुवन, २९ शुभ गुरु. ३० शिक्षा. ३१ देवे. ३२ ते वेला. ३३ बेसणां. For Private And Personal Use Only

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