Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 04
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तउ सीलमइ करावीयइ जिनभवन ठवीजह पारइ पीतलमइ भलांग्रिहिचैति पूजीजइ घरि देवालाई कराविय तीकाइमणों हइ जीछे तिहूयण सरण सामि पूजीजइ जिणवर ॥ २९ ॥
सुगंधि नीरि सनाथु करइजिण जीणि आणिदिहि ते संसार हकसमलह नवि छीपइ, बिदिय अंगलूहणे सूक्ष्मकरउ मुफरां बहु मूला नियसक्ति करावियइ जेवदेवंगतूला ॥ ३० ॥
कीजइ उरसुरूयडा तिरखंड प्रसेवा. कपूरवटे वाटीइ कपूर जितस्वी मुखि देवा, मुंकइ जिण भूयणिहि धाति अतिनीकी धूपीवालाकुंची जणी दुपीगाणी कूपी. ॥ ३१॥
अति सुगंधिहि सिरखंडि कपुरिहिआंगी कीजइ सामी वीत राग प्रभु वनवन वर्तगी कसरिहिं कुंकुमिहि तितउ निलाडिहिं सामी तेण वितपरिकलइ लली अति नीकइ धामी ॥ ३२॥
आभरण चडावियइ सोत्रणमय वडिया, हीरे माणिकि मोतीए बहुरयणे जडिया, अतिरूयडउं आभरणतणउ भलउं कीजई संपूरउ नीकउं सिहरउं पूठिउं हूतलि अनइ मसूरउ ॥ ३३ ।। __कानिहिकुंडल सिरिसमुकुटुकिरि अगिउ भाणू जाणे तिहूयणि सयल लोक असिनवउं विवाणू, उरमालहकठिसांकलउ मुक्तावलिहार नयणि निहालिने वीततरागु रुयडउ सुर सास ३४
बाहुजुयलि बेउ बहिरखा अतिनीका सोहई टीलूउं श्रीवत्सु ८७ त्रिभुवन शरण. ८८ स्वामी. ८९ जिनवर. ९० कस्तूरिवडे. ९१ कुंकुमवडे. ९२ सुवर्णमय, ९३ हीरा, ९४ माणिक.९५ मोति. ९६ बहु रत्न जडिया. ९७ अति रूडं. ९८ भलु. ९९ उग्यो. १०० भानु. १०१ त्रिभुवने. १०२ सकल.
૧૦૧ ૧૦૨
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308