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तउ सीलमइ करावीयइ जिनभवन ठवीजह पारइ पीतलमइ भलांग्रिहिचैति पूजीजइ घरि देवालाई कराविय तीकाइमणों हइ जीछे तिहूयण सरण सामि पूजीजइ जिणवर ॥ २९ ॥
सुगंधि नीरि सनाथु करइजिण जीणि आणिदिहि ते संसार हकसमलह नवि छीपइ, बिदिय अंगलूहणे सूक्ष्मकरउ मुफरां बहु मूला नियसक्ति करावियइ जेवदेवंगतूला ॥ ३० ॥
कीजइ उरसुरूयडा तिरखंड प्रसेवा. कपूरवटे वाटीइ कपूर जितस्वी मुखि देवा, मुंकइ जिण भूयणिहि धाति अतिनीकी धूपीवालाकुंची जणी दुपीगाणी कूपी. ॥ ३१॥
अति सुगंधिहि सिरखंडि कपुरिहिआंगी कीजइ सामी वीत राग प्रभु वनवन वर्तगी कसरिहिं कुंकुमिहि तितउ निलाडिहिं सामी तेण वितपरिकलइ लली अति नीकइ धामी ॥ ३२॥
आभरण चडावियइ सोत्रणमय वडिया, हीरे माणिकि मोतीए बहुरयणे जडिया, अतिरूयडउं आभरणतणउ भलउं कीजई संपूरउ नीकउं सिहरउं पूठिउं हूतलि अनइ मसूरउ ॥ ३३ ।। __कानिहिकुंडल सिरिसमुकुटुकिरि अगिउ भाणू जाणे तिहूयणि सयल लोक असिनवउं विवाणू, उरमालहकठिसांकलउ मुक्तावलिहार नयणि निहालिने वीततरागु रुयडउ सुर सास ३४
बाहुजुयलि बेउ बहिरखा अतिनीका सोहई टीलूउं श्रीवत्सु ८७ त्रिभुवन शरण. ८८ स्वामी. ८९ जिनवर. ९० कस्तूरिवडे. ९१ कुंकुमवडे. ९२ सुवर्णमय, ९३ हीरा, ९४ माणिक.९५ मोति. ९६ बहु रत्न जडिया. ९७ अति रूडं. ९८ भलु. ९९ उग्यो. १०० भानु. १०१ त्रिभुवने. १०२ सकल.
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