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२४५ भामंडलु, सुर कुसुमदृष्टि, सीहासणु, छत्र, भेरि, चमर देवंजु णिहिण जोइ कवणु प्रभुत्रुए थितिएसी वीतराग मेल्ही अवर न होइ मुरादिक जिनसेव करई नवि सगलई ॥ २५ ॥
तउ जिन सविजीव विशेषिहि करीयइ भागउ जिण भुवणि तेउ समुद्धरियइ लीपिउ धउलीउ भीगु देइ चीत्रामु लिषानइ इणपरि भुयणु ससारीय जन्मह फल लीजइ ॥ २६ ॥ ____ अतीउजुकाई किपिठामु जिणभुवण सीदाइ, तनिश्चिई करा. वीयए बहुफलु बोलइ आपणि सामीउ वीतरागु ईणपरि भणेइ जीर्णोद्धारहणा पुण्य अतित होइ ॥ २७ ॥
बीजं खेत्रु सुजिनहबिंबु तेइहां विचारो मणिमय रयण सुवणमए बिरूपमकारे, हिव जिनभुवणह गृह चैत्यदेवदारा छकहीमइ कीजइ कणयभिंगार कलस जे नीर भरीजइ ॥ २८॥
६९ भामंडल, ७० सिंहासन. ७१ करे. ७२ सघळे ७३ ७३ लीपेलुं. ७४ धोळेलं. ७५ चित्रामण. ७६ भवन ७७ जन्मफल लीजे. ७८ बहुफल बोले. ७९ आपणो स्वामी वीतराग.८० एवी रीते कहे. ८१ जिर्णोद्धारतणा. ८२ पुण्य अत्यंत होय. वीतराग भगवान् कहे छे के जे जिर्णोद्धार करावे छे तेने निश्चय अत्यंत फल थाय छे. वीजुं क्षेत्र जिनेश्वर भगवान्नी प्रतिमा भराववी ते जाणवू. मणिमय प्रतिमा, रत्न प्रतिमा, सुवर्णमय प्रतिमा करावीने जिन भवनमां तथा घर देरासरमां पधरावीने श्रावक जळकलश भरीने तेनी पूजा करे. ८३ बीजुं क्षेत्र. ८४ हवे. ८५ कनक श्रृंगार. ८६ भरीजे.
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