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आगइ कीजइ रंगमंडपु जो पुस्तक कहिउ ॥ २० ॥
तेहिं आतरइ बलामणु कीजइ आधेरउ जिमजिनभवनह नालिमाहि दीसइ, नीकेरउत्तउत्तंगतोरणु थंभ थोरु घांटु अति. नीक उकडीयइ नानाविधि रूपि सारुवारु तहि नीकालु जडिउ।२१॥
बिहु पक्ष फरती देहरी कीजइ इतिरुडीव बीजमूर्ति जिन इतणीमाहि तेवड तेवडी कणयकलस दंड घांटीई धजपूरीय कियजइ छोह पकत प्रासादु भलउ जीवनीपाइ वाजइ ॥२२॥
तहि जिनबारि कमाडभला कीजइ, अति सुविघट्ट मणहनाइ मुरुतउ अनिसुघुटुसादुदार दृढद्रागुणन आवइ संपुट तां कूची सांकली अतिनीसलकीजइ जउ आथमगह जाइ स्वरतउ ? संपट दीजइ ॥ २१॥ ___ अतिति सपउ जिणहस्यणु किरिअमरविमाणु दीसइ सुरति वीतरागमाहि तिहुयणुभाणु कठणुरूप वीतरागतणु जोइ कवणु विशेष अडतिहारिन जिणहतणइ वृक्ष होइ अशोकू॥२४॥ ___ ४९ रंगमंडप. ५० उंचु तोरण. ५१ कनक कलश. ५२ ध्वज ५३ कीजे. ५४ पंक्ति. ५५ प्रासाद ५६ भलो. ५७ वाजे ५८ त्यां जिन बारणे. ५९ आवे. ६० कीजे ६१ दीजे. ६२ जिन भुवन. ६३ अमर विमान. ६४ देखाय. ६५ त्रिभुवन भानु. ६६ विशेष ६७ अष्ट प्रातिहार्य ( अशोक वृक्ष) २ सुर पुष्पवृष्टि. ३ दिव्य ध्वनि. ४ चामर. ५ आसन.६ भामंडल.७ दुंदुभि.८ छत्र, अष्टप्रातिहार्य छे तीर्थकरने ए अष्ट मातिहार्य होय छे. ६८ अशोक
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