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त्रीजइति परधन परिहारो, चडथइ शीलतणउ सवारो ||१२|| परिग्रहतणउं प्रमाणु ऋतु पांमचइ कीजइ
fruit भवसहसमुद्धो जीव निश्चय तरीजइ ॥ १३ ॥
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छतु दिसितण प्रमाणु, भोगुवभोगवत सातमइ जाणु,
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अनरथ व्रतु दंड आठम होइ, नवमजं व्रत सामायकु तोइ ||१४|| देसावगासी दसमुत्रतु नथी मूह
पोषध
ऋतु अग्यारमसउ जम समतूलु ॥ १५ ॥
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व्रतुवारमउं अतिथिसंविभागुओ तोइ सुकतियरतनमागो
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जईण मारगि चालई संसारे, धनु सक्रियार ते नरनारे ||१६||
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समकितमूल ऋतु बारइ गहिय धरम पालेउ
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सप्त क्षेत्रि जिन भणिया तिह वित्तु वावेउ || १७ ॥
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सप्तक्षेत्र जिन कहिया महामुनि वितु वावेजिउ विवहपार जिन वचसु आराधीउ अवक्रतु साधिउ लहइ पारु संसारुसारे ॥ १८ ॥ सपते क्षेत्रि जिन सासणिहि सगली कहीजई, अथिरु रिधि धनु इव्यु वीजमुतहि जिवावीजाइ तेहि क्षेत्र वावे त्रण यानकि लाभ देवलोको कणनी थाहरु मुक्तिफलो पामउ निसंदेहो || १९||
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पहिलंड क्षेत्र सुजिणहभुवण करावड बंगूजीछे महिमाकरइ सहु श्री चविह संघमूलगतार गूढ मंडइ पुछ कुवजकी सहिउ
३५ च=चोथे. ३६ छहुं व्रत ३७ दिशिनुं परिमाण ३८ भोगोपभोगत ३९ जाण ४० अनर्थ दंड आठमुं. ४१ अतिथि संविभाग ४२ यतिना मार्ग. ४३ धन्य, ४४ वृत्त. ४५ पावो. ४६ को ४७ वित्त ४८ पहेलुं क्षेत्र.
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