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२४२ जिणवर धम्म सम्मतरयणु विति निवसय जीह, सोहग उपरि मंजरि तीह ॥४॥ पुणे जिणसासणु दुलहउं जीव संभलि कथं तु निरुपम नाणुपहाणु पकुजि जिनवर धम्मु ॥५॥ भरहखित्ति खट्पंडह "धिनिकेवलिं नाणि" जिणवर जंपित वैताढ्य परहां त्रिखंड होइ, तहि धरमनासुनामुनवरतहोइ॥६॥ उल्या त्रिहुखंडि घित्ति (थिति;) केवलि इम आषय, (भाषा) ताहमाहि दुनि षंडने पडिया पाषइ ॥ ७ ॥ मजि पंडइ कुवइनी मडिउ, तेउ बिहुभागि पाछइ पडिउं, चउथउ भाग धरमनइ लागे. तेउ जोइ जईसय विभागे ॥८॥ ते न वाटणवइभाग साहू, मिथ्यातिहि जडिन थाकतउं कुमति कुबोधि कुगुरुग्गहि पडिउं ॥ ९ ॥ थोडा जीव केई दीसइ तेजे जिणन भणअंमनिहिकरंति हिव तिहुयणिहि सारु समिकत्तो पामिउ जीवि जिनभणि उत्ततत्तो॥१०॥ बार वरततर्फ पामिउ जे जिणवरि वुत्ता सुगइति बंधण सत्ता जीव मुकति दीयंता ॥ ११ ॥ प्राणातिपातत्तु पहिल होइ बीजउ सत्यवतु जोइ
२० सम्मत्त रयणु सम्यक्त्व रत्न. २१ पुणु-पुन: २२ जिणसासण-जिन शासन. २३ निरुपयु-निरुपम.२४ नाणुपहाणु ज्ञान प्रधान. २५ भरह खित्ति=भरत क्षेत्रे. ६ षट् खंडह=छ खंड. २७ धिनि केवली नाणी धन्य केवलज्ञानी. २८ चउथउ भाग= चतुर्थ भाग. २९ हिव हवे. ३९ तिहयणिहि सारु-त्रण भुवनमा सार. ३१ तत्तो तत्त्व. ३२ मुक्ति मोक्ष. ३३ पहिलउ-पहेलं. ३४ वीजउ सत्यवतु चीजें सत्य व्रत.
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