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२४७ सारूयार भवियण मणिमोहइ सोनाकेरी पालठी कीज जिनपते सोहइ बीजउरुउं सामी जिण हथ्थे ।। ३५ ।
इणि विवेहि न हुय विशेषि हि जिणवर पूजसलख्खणीय करउ मनरंगिहि नवनवभंगिहि श्री संघनयण मुहामणीय ॥३६॥
एतीअजीइ आभरणतणी पूजा नीपनी हिव आरंभि सुजिणह अंगि सुरहां कुसमपन्नी कीजइ कुसमेव गेरीयए पूजकारणि रूयडी वावरीइ दीहु देव काजि अन्न इच्छा जीछवडी ॥ ३७ ॥
रायचंपु, केतकी, जाइ, सेवती परिमल बलि, सिरीवालउ विअलु अनुकरणी पाडल, नीलउत्री विविध पूजामाहि सोहइ अति विगी वितिपति दीसइ रूपडे तिणि नवनवमी ॥ ३८ ॥
नीकउ कणयरु, पूजमाहि वरणकि सोहंती परिमलु पसरइ असमजाति पाच्छइ विहसंती कुंदु अनइ मचकुंदु वालु जुई परिजाते पास कुसमि कर पूजउ तुम्हि तिहुयणपत्तो ॥ ३९ ॥
सुरहउ सरूयउवावची अअइ इकल्हार, सहुयइ वीतराग सामी सुरसार, नीलउत्री नागवेलि पानमाहि जा सोहइ ईणपरिपूजइ सामि सामल नरनारी धन्न ॥४०॥
पएहरामणीयइ पूजतोइ नीकी सोहंती तउ नक्षत्र हतणी मालदी वाणूंवंगी पाखलायइ माहि तुयण सिंह केरी आणी कुसम पूजियइ तेसवि संखेवी ॥४१॥
समोसरणु जो पूजीयए जोतिन्नि पयारू बिहु पखि दीसइ वीतरागु जहि तिहुयणसारू तउपूजानी पन्नीय पूवि धूप उट
३ भविजन. ४ बीजोरु ५ हवे ६ बकुल. ७ श्रीवालो. ८ पहेरामणी ९ समवसरण. १० वीतराग. ११ त्रिभुवनसार.
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