Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 04
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 270
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४१ संवत १३२७ मां रचाएलो गुर्जर भाषा साहित्यनो रास. ॥श्री सात क्षेत्रनो रास ॥ ॥ॐ नमो वीतरागाय ॥ सवि अरिहंत नमेवि, सिद्ध सूरि उवजाप पनर कर्म भूमि साहु, तीह पणमिय पाय ॥ १ ॥ जिणसासणमाहिं जो सारो, चउदह पूरवतणउ समुधारो समरिउ पंच परमेष्टि नवकारो सप्त क्षेत्रि हिब कहउ विचारो॥२॥ धुनु धुनु तेजि संसारे, जिहं जिणवरु स्वार्म गुरु मुसाहु जिणभणिउं, धम्मु सुगइ गामी ॥ ३ ॥ बारि अंगि दुलहु मणु जम्मु, अतीविशेषि (असंत विशेषे) जिंहि १ सर्व. २ अरिहंत तीर्थकर. ३ सिद्ध अष्ट कर्मथी रहित परमात्मा. ४ सूरि आचार्य. ५ उवजाय भणावनार उपाध्याय. ६ साहु साधु, ७ हिव हवे. ८ कहउ कहु. सर्व अरिहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय अने पनर कर्मस्थित साधु ए पंच परमेष्टिना पादमां नमस्कार करीने सात क्षेत्रनो विचार कई छ. पंचपरमेष्ठिरूप नवकार छे ते जिन शासनमा सार छे. तेमन चौद पूर्वनो समुद्धार छे. ॥ २॥ ज्यां जिनेश्वर स्वामी छे ते देव तरीके छे. मुसाधु गुरुरूप छे. सुगति देनार जिनकथित धर्म ए त्रण रत्ननी जेने प्राप्ति थइ छे ते जीव जगत्मां धन्य धन्य छे. ॥ ३ ॥ ९ धुणु धुणु=धन्य धन्य. १० जिहंज्यां. ११ जिणवरु-जिनवर. १२ सुसाहु-साधु. १३ जिणभणिजिनभाणत. १४ धम्मु धर्म. १५ मुग्गइ गामी= ति गामी. २६ दुलहु-दुर्लभ. १७ मणु जम्म मनुष्य जन्म. १८ जिति ज्यां. १९ धम्म धर्म. For Private And Personal Use Only

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