Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 04
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 263
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पन्नरस सापस प्रति, गौतम दीक्षा दीधा ते केवल कमलावरे, कोन क्रिया तीन कीध. कृतअपराध खमावती निजगुरणी के साथ. मृगावती शुद्ध भावसे, सिद्ध स्वरूप सनाथ. साधुक्रिया केसे सधे, घाणीमें पीलंत: शुद्धभावते शिवलहे, खंदक शिष्य महंत. . नाच नचन किरिया करी. साध क्रिया नहीं कीध. अषाढभूति भावशुद्ध, सिद्ध सुधारस पीध. ते हिज दीन दिक्षा ग्रही, क्रिया कौनसी होय. ये शुद्धभावे सिद्धता, गजमुकुमाले जोय. गुणसागर केवल लह्यो, सांभल प्रथवीचंद पोते केवल पद लहे, शुद्धभाव शिव संघ सिंहणी भक्षे शरीर जव, मुनि करणी किम होय. साध सुकोमल शिव लहे, कारण अन्यन कोय; खंदक खाल उतारतां, साधु क्रियाकी सिद्धा भव निवास तज भाव शुद्ध, सिद्ध बुद्ध पद लीध. उपजतो अक पहोरमें, केवल ज्ञान अनंता भाव अशुद्ध ते नव लहे, श्रीदमसार महंत. असंख्यात दृष्टांतकुं, कौलु वरणे जाय; यै जेते बुद्धिमें चढ़े, ते ते दीध बताय. भाव शुद्धता सिद्धको, कारन तिर्नु काल; क्रिया सिद्ध कारण नहीं, निश्चयनय संभाल. ज्ञान सकल नय साधीये, करणी दासी प्राय: शुद्ध भावना सिद्धको, कारण करण कहाय. ज्ञानातम समवाय हे, किरिया जड संबंध १८ For Private And Personal Use Only

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