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प्रकाशकीय वक्तव्य
सुप्रसिद्ध समाज सेवी, पुरातत्ववेत्ता, उदारमना बाबू छोटेलालजी जैन समाज के प्रमुख व्यत्ति थे । उन्होंने समाज संगठन और सुधार तथा संस्कृति के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है । भारत की राजधानी देहली स्थित वीर सेवा मंदिर उनके अथक श्रम एवं पुरातत्व प्रेम का प्रतीक है । उनका साहित्य प्रेम एवं विद्वानों के प्रति श्रद्धाभाव अनुकरणीय है। वे अपने व्यापारिक कार्यों का उत्तरदायित्व निभाते हुए निरंतर अस्वस्थता के काल में भी समाज सेवा, संस्कृति, पुरातत्त्व, व्यावसायिक संगठनों मादि के लिए अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देते रहते थे।
अनेक मित्र प्राप जैसे ममाज सेवी का अभिनन्दन करने का विचार प्रकट करते रहते थे किंत प्रापने अभिनन्दन कराना कभी स्वीकार नहीं किया क्योकि पाप विज्ञापन के बिना सेवा में ज्यादा विश्वास करते थे।
श्रद्धय पं० चैनसुखदासजी अध्यक्ष जैन संस्कृत कालेज, जयपुर मुझे उनके प्रभिनन्दन के लिए प्रेरणा करते रहते थे लेकिन बाबूजी से जब कभी इसकी चर्चा छेड़ता वे ऐसा विरोध करते कि कई दिन तक इस विचार को पुनः उठाने का साहस ही नहीं होता था ।
सन ६४ की रक्षा बंधन के पावन दिवस पर हम कुछ मित्रों ने बाबूजी को अस्वस्थता एवं वाक्य को लक्ष्य में रखकर उनके अभिनन्दन का निश्चय किया और उस निश्चय को उनकी जानकारी बिमा ही क्रियान्वित करना प्रारम्भ कर दिया।
इस कार्य के लिए श्री छोटेलाल जैन अभिनन्दन समिति का गठन किया गया। जिसकी सदस्य सूची प्रागे दी गई है ) समाज के प्रमुख व्यक्तियों ने बाबूजी का अभिनन्दन करने के निश्चय की प्रशंसा की एवं अपना सहयोग देने का प्राश्वासन दिया।
समिति की प्रथम बैठक २८ फरवरी सन् ६५ को बैलगछिया उपवन में उद्योग पति श्री मिश्री. लालजी जैन की अध्यक्षता में हुई। समिति ने बाबूजी के अभिनन्दन के प्रतीक स्वरूप अभिनन्दन