Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti

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Page 8
________________ - आस्था की ओर बढ़ते कदम कसौटी जैन धर्म का दर्शन है, जिसे भगवान ऋषभदेव से भगवान महावीर तक की तीर्थकर परम्परा ने संसार के सामने प्रस्तुत किया। यह ज्ञान तीर्थकरों ने लम्चे तप के मार यम से प्राप्त किया। जैन दर्शन ने सत्य की पहचान का मार्ग अनेकांतवाद का सिद्धांत है। जैन धर्म कभी एकांत सत्य या सत्यांश को स्वीकार नहीं करता। जैन धर्म में कदाग्रह के लिए कोई स्थान नहीं है। अनेकांतवाद कहता है कि मैं जो कहता हूं, वह ही सत्य नहीं, बल्कि जो सच है वह मेरा है सत्य की यात्रा ज्ञान की यात्रा है। अहिंसा, सयंम तप की यात्रा है। यह ज्ञान अरिहंत परमात्मा ने संसार के जीव को बांटा है। तीथंकर परम्परा का ज्ञान दो शब्दों में पूरा हो जाता है १. जीव २. अजीव। सारा जैन तत्व साहित्य इन दो शब्दों की व्याख्या में समा जाता है। जीव घर प्रकार के होते हैं। १. देव २. मनुष्य ३. तिथंच ४. नारकी जीव की अनेक जातीयों - भेद उपभेद शास्त्रों में उपलब्ध होते हैं। जीव का अर्थ खाली शरीरधारी जीव नहीं, उसका विशुद्ध अर्थ ते. आत्मा है। जो व्यक्ति अरिहंतों के मार्ग पर चलता है वह सिद्ध मार्ग (मुक्त अवस्था) को प्राप्त कर लेता है। अरिहंतों के मार्ग पर चल अरिहंत अवस्था प्राप्त की जा सकती है। अर्हत है. सिद्ध परमात्मा बनता है कर्म बंधन को मुक्त हो जन्म मरण की परम्परा को समाप्त करता है। इसी परम्परा तथंकर परम्परा के अंतिम तीर्थकर श्रमण भगवान् महावीर ने जीव के कल्याण के लिए श्री उतराध्ययन सूत्र के अध्ययन को धर्म के चार दुर्लभ अंगों की व्याख्या की है जो इस प्रकार है :

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