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(१०) अष्टाङ्गहृदयसंहिताकी भूमिका । __ वाग्भट कौन और किस समयमें थे कहां जन्मस्थानथा इसका विना अपना प्रमाण पाये केवल अंग्रेजी पद्धतिके अनुसार निर्णय करनेमें उत्साहित न होकर इतने ही पर सन्तुष्ट होतहैं कि ग्रंथ कर्ताका समय कभीका हो परन्तु जो उनकी संहितासे देशका उपकार हुआहै उससे इनका नाम चिरकालसे चलाआया और चिरकालतक चला जायगा। . भाषाटीका सहित यह ग्रंथ शीघ्रही बिकजानेके कारण पुनः छापनेकी आवश्यकता हुई उस समय श्रीसेठजीने इसके पुनः शोधनेका भार मुझे समर्पण किया मैंने यथाशक्ति सावधानतासे संस्कृत टीका अनुसार इसको मिलाकर जहां जहां संकीर्ण टीका पायी वहां सम्यक्प्रकारसे विस्तार कर दिया जिससे आशय समुझमें आजाय और संस्कृत टीकाके अनुसार बहुत स्थल उपयोगी बातोंसे पूर्ण कर दिये हैं प्रत्येक श्लोक और उसकी टीका को अच्छी प्रकारसे देख यथोचित लिख दिया है और पूर्व टीका में जो वाक्यरचना में भेद था वह अच्छी प्रकार शोधकर सर्व साधारण की बोल चाल में आने योग्य करदिया है अर्थात् ऐसी भाषाकरदी है जो सबके समझने योग्य हो इसपर भी यदि कहीं अशुद्धता रहमई हो तो पाठक महाशय अपनी उदारतासे क्षमा करेंगे ॥
पूर्व टीकामें त्रायमाणका अर्थ बनफशा लिखाथा और इस औषधीका प्रयोग बहुत स्थलों . आया है, परन्तु इसका अर्थ बनफशा है ऐसा प्रमाण नहीं मिलता इसकारण वहांसे बनफशा. काटकर त्रायमाणही लिखदिया बहुतसे पंडितोंका मत है कि त्रायमाण मिर्चि या गंधका नाम है. कोई असफाक कहते हैं विज्ञ महाशय इसको निर्णय कर लेंगे । आपका शुभाकांक्षी-
आपका कृपाभिलाषीपण्डित ज्वालाप्रसाद मिश्र 'खेमराज श्रीकृष्णदास, मोहल्ला दिनदारपुरा.
__ " श्रीवेङ्कटेश्वर " स्टीम् प्रेस मुरादाबाद.
मुम्बई.
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