Book Title: Arhan Mahapujan tatha Poshtik Mahapujan
Author(s): Vardhamansuri, Anantchandra, 
Publisher: Shantilal Himaji Jasaji Mutha

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Page 17
________________ महन्महा ॐ नमो लोए सब्यसाहणं, मोचके पादयोःशुभे । एसो पंचनमुक्कारो, शिला वज्रमयी तले ॥४॥ पूजनविधिः सधपावप्पणासणो, वनो वज्रमयो बहिः । मंगलाणं च सव्वेसिं, खादिरांगारखातिका ॥ ५॥ स्वाहांतं च पदं ज्ञेयं, पढमं हवइ मंगलं । वप्रोपरि वज्रमयं, पिधानं देहरक्षणे ॥६॥ महाप्रभाषा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रवनाशिनी । परमेष्ठिपदोद्भूता, कथिता पूर्वसूरिभिः ॥ ७ ॥ यश्चनां कुरुते रक्षां परमेष्ठिपदैः सदा । तस्य न स्याद् भयं व्याधि-राधिश्चापि कदाचन ॥ ८ ॥ क्षि पॐ स्वा हा हा स्वा ॐप क्षि इत्यक्षरैर्यथाक्रमं पादांगुष्ठाग्रजानुसन्धि-हृदयमुखभालांतान्यारोहावरोहाभ्यांमध्यांगुलिद्वयाग्राभ्यां स्पृशन् आत्मरक्षां करोति ॥ एवं वज्रपञ्जरकवचादिमन्त्रेण शरीररक्षामात्मरक्षां च प्रथमं विदध्यात् । न तदनु च जलपुष्पपत्राक्षतफलधूपपह्निदीपगन्धादीनां सर्वेषां पूजोपकरणानां निरवद्यताकरणम् ।। तन्मन्त्राश्चमे-जलमन्त्र:- . ॐ आपोडकाया एकेन्द्रिया जीवा निरवद्याहत्पूजायां निर्व्यथाः सन्तु निरपायाः सन्तुः सद्गतयः सन्तु न मेऽस्तु संघट्टनहिंसापापमहदर्चने स्वाहा ॥ इति जलाभिमन्त्रणम् । अथ पत्रपुष्पफलधूपचन्दनादिमन्त्रः ॐ वनस्पतयो वनस्पतिकाया जीवा एकेन्द्रिया निरवद्यार्हत्पूजायां निर्व्यथाः सन्तु निरपायाः सन्तु सद्गतयः सन्तु Bान मेऽस्तु संघटनहिंसापापमईदर्चने स्वाहा ।। इति पत्रपुष्पफलचंदनधूपायभिमन्त्रणम् । 35343434343425ARE REACHES प्रथमदिने प्रातः करणीयः JainEducaC ational For Personal & Private Use Only

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