Book Title: Arhan Mahapujan tatha Poshtik Mahapujan
Author(s): Vardhamansuri, Anantchandra,
Publisher: Shantilal Himaji Jasaji Mutha
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ईन्महानविधिः
१०९ ॥
उन्मृष्ट- रिष्ट-दुष्ट-ग्रह-गति - दुःखप्न - दुर्निमित्तादि; संपादित - हित-संपन्नामग्रहणं जयति शान्तेः ॥ १ ॥ या शान्तिः शान्तिजिने, गर्भगतेऽथाजनिष्ट वा जाते; सा शान्तिरत्र भूयात्, सर्वसुखोत्पादनाहेतुः || २ ||
अत्र च गृहे सर्वसंपदागमनेन, सर्वसंतान वृद्धया, सर्वसमीहितवृद्धया, सर्वोपद्रवनाशेन मांगल्योत्सवप्रमोद - कौतुक - विनोद - दानोद्भवेन शान्तिर्भवतु.
भ्रातृ, -पत्नी, मित्र, संबंधिजन, - नित्य - प्रमोदेन शान्तिर्भवतु. आचार्योपाध्यायतपोधन- तपोधनी-श्रावक-श्राविकारूपसंघस्य शान्तिर्भवतु सेवक, भृत्य - दास, द्विपदचतुष्पद, परिकरस्य शान्तिर्भवतु. अक्षीणकोशकोष्ठागारजलवाहनानां नृपाणां शान्तिर्भवतु. श्री जनपदस्य शान्तिर्भवतु श्रीजनपदमुख्याणां शान्तिर्भवतु. श्रीसर्वाश्रमाणां शान्तिर्भवतु. पुरमुख्याणां शाम्तिर्भवतु. राजसन्निवेशानां शान्तिर्भवतु. धन-धान्य, वस्त्र - हिरण्यानां शान्तिर्भवतु ग्राम्याणां शान्तिर्भवतु. क्षेत्रिकाणां शान्तिर्भवतु. क्षेत्राणां शान्तिर्भवतु.
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तृतीयदिने
प्रातः
करणीयः
॥१०९ ॥
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