Book Title: Aradhana Swarup
Author(s): Dharmchand Harjivandas
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ श्रीवीतरागाय नमः ॥ आराधनास्वरूप। MEENADA वीस व्यहरमान स्तुति (सवैया ३१ सा) श्री मंदिर आदि जिन राजत विदेह माहि पानसे धनुष बपु धारे भगवंत है । कोटपूर्व आउ जान नंत ज्ञान दर्शवान सुखद अनंत जाके वीरज अनंत है ।। सिंहासन आसनपे आपश्री वीराजमान खीरे तीहुं काल वाणी सुणे सब संत है । अब है वस्तमान ध्यावे नित इंद्र आन मे हुं वंदु बीस जिन शिवतिय कंत है ॥ ॥ श्लोक ॥ अर्हन्तः सिद्धाचार्योपाध्यायसाधवः परमेष्टिनः । तेपि स्फुटं तिष्ठन्ति आत्मनि तस्मादात्मा स्फुटि मे शरणम् ॥ ___अर्थ-अर्हन्त सिद्ध आचार्य उपाध्याय और साधु ये पंच परमेष्टी है तेही मेरे आत्मामें तिष्टे हैं इससे आत्मा ही मुझे शरण है। भावार्थ-यह परभेष्टी आत्मामें तब ही ठहर सकता है जब की उनका स्वरूप चिंतवन कर आत्मामें ज्ञेयाकार वा ध्येया For Private And Personal Use Only

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