Book Title: Aradhana Swarup
Author(s): Dharmchand Harjivandas
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 42
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आराधनास्वरूप [३१ . . . जातें जो सम्यग्दर्शनकरि शुद्ध हुवा संसार देह भोगनितें विरक्त, अर पंचपरमगुरुका शरण ग्रहण करता, सप्तव्यसनका त्याग करि समस्त रात्रिभोजनादिक अभक्ष्यका त्याग करै, ताकै दर्शन नामा प्रथम स्थान है ।। बहुरि पंच अणुव्रत, तीन गुणव्रत, च्यारि शिक्षाव्रत इनि बारहव्रतनि• धारण करै सो व्रती श्रावक दूसरा पदका धारक है । बहुरि तीनकाल साम्यभाव धारण करि सामायिकका नियम करै, सो सामायिक पदवीका धारक तीजा भेद है । बहुरि एकएक मासवि च्यारिच्यारि पर्वविय जो अपनी शक्तीकू नहीं छिपाय करिकै जो प्रोषधापवास धारण करै, ताकै चोथा प्रोषधस्थान है । याका विशेष ऐसा जो सप्तमी वा त्रयोदशीके दिन मध्याह्नकालपहली भोजन कारिकै, अर पाछै अपराहकालविर्षे जिनेंद्र के मंदिरमें जायकरिकै, अर मध्याह्नसंबंधी क्रिया करिकै, च्यारिप्रकारके आहारका त्याग करि उपवास ग्रहण करै, अर समस्त ग्रहके आरंभका त्याग करि जिनमंदिरमें वा प्रोषधोपवासके गृहमें वा वनके चैत्यालयमें वा साधुनिके निवासमें समस्त विषयकषायका त्याग करिके सोलह प्रहरपर्यंत नियम करै, तहां सप्तमी त्रयोदशीका अर्धदिन धर्मध्यान स्वाध्यायतें व्यतीत करि अर संध्याकालसंबंधी सामायिक वंदनादिक करि रात्रिनैं धर्मचिंतन धर्मकथा पंचपरमगुरुके गुणनिका स्मरणादिककरि पूर्ण कारकै, अर अष्टमीचतुर्दशीके प्रातःकालमें प्रभातसंबंधी क्रिया करिकै, अर समस्तदिवसकू शास्त्रके अभ्यासतें व्यतीत करिकै, बहुरि संध्याकालमें देववंदना करिकै, अर रात्रिकू For Private And Personal Use Only

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