Book Title: Aradhana Swarup
Author(s): Dharmchand Harjivandas
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 53
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिगंबर जैन MARJUNIORNA ।। श्लोक ॥ पुनः हस्तो पादौ तथा द्वौ द्वौ शिरो भूमौ च पंचमः । मनोवाक्काय शुद्धि च प्रणमोऽष्टांगमुच्यते ॥ १ ॥ अष्टांगवंदना करतेसमय निम्नलिखित पढ़ो मन वचन कायकी शुद्धता करके वंदो हों; मस्तक नमायके, पृथ्वीसों लगायके, खुशालीसों, प्रफुल्लिततासों, बड़ा हर्ष सहित मैं वंदो हों, दंडवत् करों हों, नमस्कार करों हों, अरहंतदेवको वा पंच परमेष्टीजीको, जय बोलो अरहंत महाराजकी जय। अरज करते समय निम्नलिखित पढ़ो। धन घड़ी धन्य भाग्य, आजका दिन मेरा जन्म सफल भया, मेरी काया सफल हुई, मेरे नेत्र सफल भये, हे भगवान् । दुराचरणथी दूर करी सारे चरणे चलावी तुमारी शरणे लो। जय बोलो पंच परमेष्टी महाराजकी जय । 20शिखामणका पद । घडी दो घडी मंदिरजीमें आय करो । आय करो मन लगाय करो ॥ घडी० ॥ जग धंधेमें सब दिन खोयो । कुच्छ तो For Private And Personal Use Only

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