Book Title: Aradhana Swarup
Author(s): Dharmchand Harjivandas
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दिगंबर जैन ।
जिनेन्द्र जन्माभिषेक। प्रभू पर इंद्र कलश भरी लायो ।
शैलराजपर सजि समाज सब, जनम समय नहवायो टेका। क्षीरोदक भरि कनक कुंभमें, हाथो हाथ सुर लायो । मंत्र सहित सो कलश सचीपति, प्रमु शिरधार ढरायो ॥प्रभू॥१॥ अघघघ भभ भभ घघ घघ बघ घघ, धुनि दशहूं दिशि छायो । साढ़े बारह कोड़ जातिके, वाजन देव बजायो ॥प्रभू०॥२॥ सचि रचि रचि शृंगार सँवारत, सो नहिं जात वतायो। भूषन वसन अनूपम सो सजि, हरषित नाच रचायो । प्रभू०॥३॥ पग नूपुर झननननन वाजत, तननन तान उठायो। घननननन घंटा घन नादत, ध्रुगत ध्रुगत गत छायो ॥०॥४॥ दिम दिम दिम मृदंग गत वाजत, थेइ थेइ थेइ पग पायो। सगृहि सरंगि घोर सोर सुनि, भवीक मोर विहसायो ||प्र०॥५॥ तांडव निरत सचीपति कीनों, निन भवको फल पायो। 'निज नियोग करि तब सब सुर मिलि, प्रभुहि पिता घर लायो ||प्र॥६॥ मातु गोदमें सोंपि प्रभू कहँ, बहु विधि सुख उपजायो॥ प्रभुसेवा हित देव राखि कैं, सुर निज धाम सिधायो ।प्रभू०॥७॥ प्रमुके वय समान सुरतन धरि, सेवा करत सहायो। देवी दास वृंद जिनवरको, जनम कल्यानक गायो ॥प्रभू०॥६॥
हजूरी पद (राग धनाश्री) आ वसंत चले महागीरपर आज प्रभूजीका न्हवन करेंगे|आ वसंत ॥टेक।। कंचन कलस धरे सीर ऊपर। क्षीरदधी जल छान भरेंगे।
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61