Book Title: Aradhana Swarup
Author(s): Dharmchand Harjivandas
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 45
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४] दिगंबर जैन। नवीन उपार्जनका मेरै त्याग है, अब मै कहां करूं ! कैसे जीg ! ऐसे अरतिकुं नहीं प्राप्त होय है, धैर्यका धारक धर्मात्मा विचारे है-यइ परिग्रह दोऊ लोकमें दुःखका देनेवाला है, सो मै अज्ञानी मोहकरि अध हुवा ग्रहणकरि राख्या था, सो अब दैव. मेरा बडा उपकार कीया, जो, ऐसें बंधनतें सहज छूटया" ऐसा चिंतन करता परिग्रहत्याग नामा नवमी पयडी• प्राप्त होय है, उलटा आरंभ करि परिग्रहग्रहणमें चित्त नही करे है, ताकै आरंभत्याग नामा आठमा स्थान होय ॥ बहुरि जो राग द्वेष काम क्रोधादिक अभ्यंतर परिग्रहकू अत्यंत मंद करिकै, अर धन धान्यादिक परिग्रहळू अनर्थ करनेवाले जानि, बाह्यपरिग्रहतें विरक्त होइ करिक, शीत उष्णादिककी वेदना निवारणेके कारण प्रमाणीक वस्त्र तथा पीतल तामाका जलका पात्र वा भोजनका एक पात्र इनि विना अन्य सुवर्ण रूपा वस्त्र आभरण शय्या यान वाहन गृहादिक अपने पुत्रादिकनिकू समर्पण करि, अपने गृहमें भोजन करताडू अपनी स्त्रीपुत्रादिक उपरि कोड प्रकार उजर नहीं करता, परमसंतोषी हुवा, धर्मध्यानते काल व्यतीत करें, ताकै परिग्रहत्याग नामा नवमा स्थान है। बहुरि गृहके कार्य जे धनउपार्जन वा विवाहादिक वा मिष्टभोजनादिक स्त्रीपुत्रादिकनिकरि कीये, तिनकी अनुमोदनाका त्याग करै वा कडवा खाटा खाये अलूणा भोजन जो भक्षण करनेमें आवै ताळू खाये अलुगा बुरा भला नही कहै, ताकै अनुमतित्याग नाम दशमा स्थान है। For Private And Personal Use Only

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