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आराधनास्वरूप ।
आलोचिदणिस्सल्लो । सघरे चेवासाहित्तु संथारे ॥ जदि मरदि देसविरदो ।तं वुत्तं वालपंडिदयं ॥२०८०॥
अर्थ-शभ्यरहित हुवा पंचपरमेष्ठीके अर्थि आलोचना करि अपने गृहविही शुद्ध संस्तरविर्षे तिष्ठिकरि जो देशविरतिका धारी गृहस्थ मरण करै, सो बालपंडितमरण भगवान् परमागममें कह्या है || गाथा
जो भत्तपदिण्णाए । उयकमो वित्थरेण णिदिहो।। सो चेव वालपंडिद- । मरणे गेर्ड जहाजोगो॥ ८१ ॥
अर्थ-जो भक्तप्रतिज्ञामैं संन्यासका विस्तार करिकै कथन कीया, सोही बाल पंडितमरणविर्षे यथायोग्य जानना योग्य है ॥ गाथावेमाणिएमु कप्पो- । वर्गसु णियमेण तस्स उववादो। णियमा सिज्झदि उक्क- । स्सएण सो सत्तमम्मि भवे ॥४२॥ ____ अर्थ-तिस बालपंडितमरण करनेवालेका उत्पाद स्वर्गनिवासी वैमानिक देवनिवि नियमतें होय है। अर सो समाधिमरणके प्रभावतै उत्कृष्टताकरि सप्तम भवविर्षे नियमते सिद्ध होय है ॥ गाथा
इय वालपडियं हो-। दि मरणमरहंतसासणे दिठं ॥
एत्तो पंडिदपंडिद-। मरणं वोच्छं समासेण ||८३॥ ___ अर्थ-इसप्रकार बालपंडितमरण होय है । सो अरहंतके आगममें कह्या है ॥ तिस परमागमके अनुसार इस ग्रंथविर्षे दिखाया। मैं मेरी रुचिविरचित नही कह्या है। भगवानके अनादिनिधन परमागममें अनंतकालतें अनंत सर्वज्ञ देव ऐसेंही कह्या है। अब आगे
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