Book Title: Aradhana Swarup
Author(s): Dharmchand Harjivandas
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 48
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आराधनास्वरूप । आलोचिदणिस्सल्लो । सघरे चेवासाहित्तु संथारे ॥ जदि मरदि देसविरदो ।तं वुत्तं वालपंडिदयं ॥२०८०॥ अर्थ-शभ्यरहित हुवा पंचपरमेष्ठीके अर्थि आलोचना करि अपने गृहविही शुद्ध संस्तरविर्षे तिष्ठिकरि जो देशविरतिका धारी गृहस्थ मरण करै, सो बालपंडितमरण भगवान् परमागममें कह्या है || गाथा जो भत्तपदिण्णाए । उयकमो वित्थरेण णिदिहो।। सो चेव वालपंडिद- । मरणे गेर्ड जहाजोगो॥ ८१ ॥ अर्थ-जो भक्तप्रतिज्ञामैं संन्यासका विस्तार करिकै कथन कीया, सोही बाल पंडितमरणविर्षे यथायोग्य जानना योग्य है ॥ गाथावेमाणिएमु कप्पो- । वर्गसु णियमेण तस्स उववादो। णियमा सिज्झदि उक्क- । स्सएण सो सत्तमम्मि भवे ॥४२॥ ____ अर्थ-तिस बालपंडितमरण करनेवालेका उत्पाद स्वर्गनिवासी वैमानिक देवनिवि नियमतें होय है। अर सो समाधिमरणके प्रभावतै उत्कृष्टताकरि सप्तम भवविर्षे नियमते सिद्ध होय है ॥ गाथा इय वालपडियं हो-। दि मरणमरहंतसासणे दिठं ॥ एत्तो पंडिदपंडिद-। मरणं वोच्छं समासेण ||८३॥ ___ अर्थ-इसप्रकार बालपंडितमरण होय है । सो अरहंतके आगममें कह्या है ॥ तिस परमागमके अनुसार इस ग्रंथविर्षे दिखाया। मैं मेरी रुचिविरचित नही कह्या है। भगवानके अनादिनिधन परमागममें अनंतकालतें अनंत सर्वज्ञ देव ऐसेंही कह्या है। अब आगे For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61