Book Title: Aradhana Swarup
Author(s): Dharmchand Harjivandas
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 40
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आराधनास्वरूप । wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww. २९] बहुरि प्रातःकाल वा मध्याह्नकाल तथा संध्याकाल इन तीन कालनिमैं समस्त पापक्रियाको त्याग करिकै सामायिक करै । इतनैं कालपर्यंत मैं समस्त सावद्ययोगका त्यागी हूं; इनि कालनिविर्षे भोजन, पान, विणन, सेवा, द्रव्योपार्जनके कारण लेण देण, विकथा आरंभ, विसंवादादिक समस्तका त्याग करौ। सामायिकके अर्थि काल दे देवै तिन कालनिमैं अन्यकार्यका त्याग करी। बहुरि सामायिकके अवसरमें आसनकी दृढ़ता करै। जो पूर्व अपनै स्थिर आसनका अभ्यास नही करि राख्या होय तासु लौकिक कार्यही नहीं होय तो परमार्थका कार्य कैसें बनै! ताः आसनकरि अचल होइ तिसहीकै सामायिक होय है। बहुरि सामायिकका पाठ वा देववंदना वा प्रतिक्रमणादिकके पाठके अक्षरनिमैं, वा इनके अर्थमें, वा अपने स्वरूपमें, वा जिनेंद्रके प्रतिबिंबमें, वा कर्मनिके उदयादिकस्वभावमें चित्त• लगाय, अर इंद्रियनिका विषयनिमें प्रवृत्तिकू रोकिकरिकै मन-वचन-कायकी शुद्धता करि सामायिक करै तथा शीत उष्ण पवनकी बाधा, डांस, मांछर, मक्षिका, कोडा, कोडी, बीछू, सादिककरि आया परीषहतै चलायमान नही होइ तथा दुष्ट व्यंतरदेवादिक अर मनुष्य अर तिर्यंच अर अचेतनकृत उपसर्गकू समभावनिकरि सहै चलायमान नही होय-परिणाममैं सकंप नही होय-देह चल जाय तोह जिनका परिणाम क्षोभकू नहीं प्राप्त होइ, ताकै सामायिक नाम शिक्षाबत होय है॥ बहुरि जो अष्टमी चतुर्दशी एकमासमें च्यारि पर्व तिनमें उपवास ग्रहण करैः च्यारिप्रकारका आहारका त्याग, अर स्नान, For Private And Personal Use Only

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