Book Title: Aradhana Swarup
Author(s): Dharmchand Harjivandas
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४] दिगंबर जैन । आवै ताका भय, सो अकस्माद्भय है। इनि सप्तभयनिका अभाव जाकै होय, सो निःशंकितगुणका धारक नियमतें सम्यग्दृष्टि होय है॥ सम्यग्दृष्टि इस लोकके भयके जीतनेषं ऐसे चिंतवन करे हैनख लगाय शिखापर्यंत समस्त देहकू अवगाहन करि जो ज्ञान तिष्ठे है, सो मेरा अविनाशी निज धन है, अनादिनिधन है, नवीन उत्पन्न नही, अर अनंनकालमें विनसे नही, यह मेरै निश्चय है, अर जो धन धान्य स्त्री पुत्र परिवार कुटुंब राज्य संपदा हैं ते परद्रव्य हैं, विनाशीक हैं, जहां उत्पत्ति है तहां प्रलय है, और जिसका संयोग है तिसका वियोग है, इनका मेरै अनेकवार संयोग भया अर वियोग भया, जानैं परिग्रहके नाश होतें मेरा नाश नही अर परिग्रहका उत्पाद होतें मेरा उत्पाद नही-उत्पादविनाश दोऊ परद्रव्यनिमैं हैं तातै परद्रव्यका नाश होते स्वभाव अचल है-नाश नही, ऐसे सम्यग्दृष्टि अपना रूपकू अखंड अविनाशी ज्ञाता द्रष्टा देखे है-अनुभवे है । ताते दशप्रकारका परिग्रह विनशनेका भय-जो मेरी धनसंपदा, मेरा स्त्रीपुत्र कुटुंब, मेरा ऐश्वर्य मति कदाचित विनशि जाय ऐसें परिणाममें शंका सो, इसलोकका भय ताकू सम्यग्ज्ञानी नहीं प्राप्त होय है ।। परलोकमें दुर्गति जानेका भय, सो परलोकभय है, सो सम्यरदृष्टीकै नही है । सम्यग्दृष्टि ऐसा विचार करे है-ज्ञान है सो मेरा वसनेका लोक है, इस अविनाशी ज्ञानलोकहीमें मेरा निश्चल बसना है, अर जे नरक स्वर्ग मनुष्य तिर्यच महादुःखनिके भरे लोक है सोमेरा लोक नही है-पुण्यपापा” उपज्या है, पुण्यका उदय होई तदि जीव शुभ-गतिकुं प्राप्त होय है, सुगति दुर्गति दोऊ बिनाशिक हैं, कर्मकृत For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61