Book Title: Aradhana Swarup
Author(s): Dharmchand Harjivandas
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 37
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६ । rrimewwmwwwmamarrimariwwwnewwww. दिगंबर जैन । बहुरि जिस शास्त्रमें हिंसा मैं धर्म कह्या; तथा जिनमैं भंडकथा, कामकथा, वशीकरण, कपट, छलवर्णन, तथा युद्धशास्त्र तथा रागद्वेष मिथ्यात्वके वधावनेवारे खोटे शास्त्रनिका श्रवण करना; सो दुःश्रुति नाम अनर्थदंड है ।। बहुरि जो प्रयोजनविना दोडना, कूटना, जलकू सीचना, काटना, विनाप्रयोजन अमिका बधावना, पवनका उडावना, वनस्पतीका छेदना इत्यादिक निष्कलव्यापार-प्रवृत्ति करना, सो प्रमादचर्या नामा अनर्थदंड है। ऐसे पंचप्रकारके अनर्थदंडनिका छोडना सो अनर्थदंडत्याग नामा दूसरा गुणवत है ।। बहुरि जो यावज्जीव दशदिशामैं गमनका प्रमाण कीया, सो तो दिग्विरतिव्रत है। तिसमैं जो दिनप्रति मर्याद करै-जो मै आजि इतनी दूरही गमन करूंगा ऐमैं जो कालकी मर्याद करि गमनका परिमाण निति करै-ताकै देशावकाशिकाशिकवत कहिये हैं । बहुरि अपनी भोगोपभोगसंपदाकू जाणिकरिकै अर रागभावके घटावने जो इंद्रियनिके विषयनिका परिमाण करे, ताकै भोगोपभोग नामा शिक्षाव्रत है ॥ तिनमैं मद्य, मांस, मधु, नवनीत जो लुण्यो, कंद, मूल, हलद, आदो, निंब, केवडा, केतकी इत्यादिकनिके पुष्प इनिमें तो नियम नही; ये तो बहुत सजीवनिका स्थान कहै, ता” यावज्जीव त्याग करना उचित है। अर जो आपकै उदरशूलादिक दुःख करनेवाला जो प्रकृतिविरुद्ध है, ताका त्याग करै । जाते जो अपनै दुःख होना, रोगका बधना, मरण होना, इनकू नही गिणता जिव्हा इंद्रियका लोलपी होइ प्रकृतिविरुद्ध आहार करे है, ताकै तीव्ररागजनित अशुभकर्मका बंध होय है ॥ For Private And Personal Use Only

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