Book Title: Aradhana Swarup
Author(s): Dharmchand Harjivandas
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आराधनास्वरूप । ___ अब अकस्माद्भयकू निराकरण करे हैं ॥ मेरा स्वरूप स्वभावहीते शुद्ध है, ज्ञानस्वरूप है, अनादिका है, अविनाशी है, अचल है, एक है, इसमें दूजेका प्रवेश नही है, चैतन्यका विलासरूप समस्तव्यनिका जामैं प्रकाश हो रह्या है, अर समस्तविकल्परहित अनंतसुखका स्थान है, तिसमैं अचानक कुछ होना नहीं है । ताते ज्ञानी सम्यग्दृष्टि अपना स्वरूपमें अनंतानंत काल होतेहूं द्रव्यकृत भावकृत कुछह उपद्रव होना नहीं माने है। केवल ऐसा साहस सम्यग्दृष्टि जीवही करनेकुं समर्थ है। जो भयकरिक चलायभान जो त्रैलोक्य तानै छांडी है प्रवृत्ति जातें ऐसा वज्रपातळू पडतेह अपने स्वभावकी निश्चलताकरिकै समस्तही शंकाकू त्यागिकरिकै अर अपना स्वरूपकू अविनाशी ज्ञानमय जानत है अर ज्ञान नही च्युत होय है। भावार्थ-ऐसा वज्रपात पडै ! जो लोक चालते हालते खाते पीते जैसेके तैसे अचल रहिनाय ऐसा भयंकर कारण होतें जो अपना ज्ञानमय आत्माकू अविनाशी जानता भयकू नही प्राप्त होय, तिसकै निःशंकित अंग होय है ॥ बहुरि इंद्रियजनित सुखमें जाकै अभिलाष नही, धर्मसेवनकरि धर्मके फलवू नही चाहै, सो निष्कांक्षित गुण है। जाते सम्यग्दृष्टीकू इंद्रियनिके विषयजनित सुख दुःखरूप भासे हैं। कैसे हैं विषयनिके सुख ? कर्मके परवशी हैं, पुण्यकर्मका उदय होइ तदि विषय मिले हैं, बहुरि मिलै तोहू थिर नही हैं-अंतसहित हैं, बहुरि बीचिबीचि इष्टवियोगादिक अनेक दुःखनिके उदयकरि सहित हैं, पापका बीन हैं। ऐसे इंद्रियजनित सुखमें वांछाका अभाव सो निष्कांक्षित अंग है।। For Private And Personal Use Only

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