Book Title: Aradhana Swarup
Author(s): Dharmchand Harjivandas
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 34
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आराधनास्वरूप | [ २३ बहुरि जो विशुद्धता वधि जाय तो व्रत नामा दूसरी प्रतिमा, तिसमैं बारा व्रत धारण करे है । तिन व्रतनिका ऐसा संक्षेप हैजो अपनी बुद्धिपूर्वक नियम करना, सो व्रत है । तिनमैं जो अपने संकल्प सजीवनिकी हिंसा करनेका त्याग करै; मन वचन काय संकल्पकर सजीवनिका बात नही करे, अन्य मन वचन कायकरिकैं नही करावै; अन्य करता होय तिसकूं मन वचन कायकर भला नही जाने - प्रशंसा नही करें; रोगादिककी पीडाकरि वा धनके लोकरि वा भयकरि, वा लज्जाकरि, कदाचित् अपना प्राण जाय तो वे इंद्रियादिक त्रसका घात नही करै; जातें गृहस्थकै एकेंद्रियकी हिंसाका त्याग तो बणि सकै नही; जाकी चूला उखणी, भुवारी, परीडा, अर द्रव्यका उपार्जन ये कर्म पापहीके हैं, ता पृथ्वीकाय, जलकाय, अग्निकाय, पवनकाय, वनस्पतिकाय इनिके आरंभ मैं तो अत्यंत घटाय यत्नाचारपूर्वक प्रवर्तन करै अर संकल्पी त्रसहिंसाका त्याग करै; अर आरंभ में यत्नाचारपूर्वक प्रवर्ततैहू जो कदाचित् विराधना होइ तो आपकै संकल्प है नही, कोऊ लाख धन देकरि एक कोडी मरावै, वा भयकरि मरावै, तो प्राण जावो! वा धन जावो! परंतु अपने संकल्प एक जीवकूं नही मारै; ताकै अहिंसा नामा अणुव्रत होय है । जातैं रागादिकनिकी उत्पत्ति सो हिंसा है, अर रागादिकनिकी उत्पत्तिका अभाव, सो अहिंसा है। जो वीतरागता नहि विस्मरण होता निरंतर यत्नाचाररूप प्रवर्ते अर दयाधमक एक क्षण विस्मरण नही होय, ताकै अहिंसा नाम अणुव्रत है ॥ बहुरि जो हिंसाके करनेवाले वचन नही बोले, वा कर्कश वचन नही कहै, वा अन्यकै दुःख उत्पन्न करनेवाला सत्य वचनहू For Private And Personal Use Only

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