Book Title: Aradhana Swarup
Author(s): Dharmchand Harjivandas
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आराधनास्वरूप। ऐसे ममता करी बहुरी अन्यका कराया अर्हत्प्रतिबिंबादिक विषै “ अन्यका है" ऐसे परका मानि परिणाममें भेद करे है ताते चल कह्या है। इहां दृष्टांत कहे है-जैसे नाना प्रकार कल्लोलनिकी पंक्ति विषै जल एक ही तिष्ठे है तथापि भी नाना रूप होई चले है, तैसें सम्यक्त्वप्रकृतिका उदयतें श्रद्धान है सो भ्रमणरूप चेष्टा करे है । भावार्थ-जैसे जल तरंगनिविर्षे चंचल होई परंतु अन्य भावकू न भजै; तैसें वेदक सम्यग्दृष्टिहू अपना वा अन्यका कराया जिनबिम्बादिक बि , " यह मेरा है यह अन्यका है " इत्यादिक विकल्प करे है, परंतु अन्य रागी द्वेषी देवादिकळू नाही भने है। अब मलिनपणा कहे हैं-जैसे शुद्ध सोनाहू मलका संयोगतें मैला होई है; तैसें सम्यक्त्वहू सम्यक्त्वप्रकृतिके उदयतें शंकादिक मलदोषका संयोग” मलीन होई है । अब अगाढ कहे है। जैसै वृद्धका हस्तकी लाठी स्थानमें तिष्ठतीहू कंपायमान रहे हैगिर नहीं तोडू दृढ नहीं है तैसें आप्त आगम पदार्थनिका श्रद्धानरूप अवस्था तिस विषै तिष्ठता हुवा भी परिणाममें कांपे है, दृढ नहीं रहै, ताकू अगाढ कहिये है । ताका उदाहरण ऐसा-समस्त अरहंत परमेष्ठीनिकै अनंतशक्तिपना समान होते जाकै ऐसा विचार होई इस शांतिक्रिया विर्षे शांतिनाथ स्वामी ही समर्थ है, बहुरि इस विघ्ननाशन आदि क्रिया विर्षे पार्धनाथस्वामी ही समर्थ है इत्यादि प्रकार करि रुचि-प्रतीतीकी शिथिलता है तातें बूढेका हाथ विषे लाठीका शिथिलसंबंधपना करि अगाढका दृष्टांत है । ऐसें सम्यकृत्व For Private And Personal Use Only

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