Book Title: Aradhana Swarup
Author(s): Dharmchand Harjivandas
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आराधनास्वरूप । Aw प्रश्न-तीन रत्न और सम्यक् तप कहांपर तिष्ठे है ? उत्तर-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और सम्यक् तप यह चारो आत्मामें ही तिष्टे है तिससे आत्मा ही मेरे शरण है। भावार्थ-दर्शन ज्ञान चारित्र और तप ये च्यारों आराधना मुझे शरण हो, आत्माका श्रद्धान आत्मा ही करे है, आत्माक। ज्ञान आत्मा ही करे है, आत्माकी साथ एकमेक भाव आत्मा ही होता है और आत्मा आत्मामें ही तपे है, वही केवलज्ञान ऐश्वर्यको पावे है, ऐसे चारों प्रकार कर आत्माहीको ध्यावे इससे आत्मा ही मेरा दुःख दूर करनेवाला है, आत्मा ही मंगलरूप है । CA09 सम्यक्त्वको पीछान। अनंतानुबंधी ४, मिथ्यात्व १, सम्यग् मिथ्यात्व १ सम्यक्त्व १ इन सात प्रकृतिनिका उपशम उपशम सम्यकत्व होइ अर इन सप्त प्रकृतिनिके क्षयतै क्षायिक सम्यक्त्व होय है। बहुरि अनंतानुबंधी कषायनिका अप्रशस्त उपशमको होते अथवा विसंयोजन होते बहुरि दर्शनमोहका भेद जो मिथ्यात्व कर्म अर सम्यग् मिथ्यात्व कर्म इन दोऊनिकू प्रशस्त उपशम रूप होते वा अप्रशस्त उपशम होते वा क्षय होनेके सन्मुख होते बहुरि सम्यक्त्वप्रकृतिरूप देशचातिस्पर्द्धकनिका उदय होते ही जो तत्वार्थका श्रद्धान है लक्षण जाका ऐसा सम्यक्त्व होइ सो वेदक ऐसा नाम धारक है । जहां विवक्षित प्रकृति उदय आवने योग्य नही होइ अर स्थिति अनुभाग For Private And Personal Use Only

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