Book Title: Aradhana Swarup
Author(s): Dharmchand Harjivandas
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir <] दिगंबर जैन । आप्तो पज्ञमनुलंघ्यमदृष्टेष्टविरोधकं । तत्वोपदेशकृत् सार्व शास्त्रं कापथघट्टनम् ॥ १ ॥ अर्थ - एते गुणसहित होय सो शास्त्र है। आप्त जो सर्वज्ञ वीतराग ताकी दिव्य ध्वनिकरी प्रकट कीया होय अर जाका अर्थ तथा शब्द वादि प्रतिवादी करि तिरस्कारकूं नही प्राप्त होइ, एकांतीनिकी मिथ्या युक्ति करी द्या नही जाय, बहुरि प्रत्यक्ष अनुमानकरि जामैं विरोध नही आवै, अर वस्तुका जैसा स्वभाव है तैसा तत्त्वभूत उपदेशका करनेवाला होइ, बहुरि समस्त जीवनिका हितरूप होइ । किसही जीवका अहितकूं नही करता होय, अर कुमार्गका दूरि करनेवाला होय सो शास्त्र है । जातें अल्पज्ञानीका कला तथा रागी द्वेषी का तो प्रमाण ही नही है । तातें आप्तका उपदेश्या आगम है सोही प्रमाण है । अर जाका अर्थ परवादीनिकरी बाधाकूं प्राप्त होइ प्रमाणकरि बाधित होइ सो काहेका आगम ? बहुरि जामैं प्रत्यक्षप्रमाणसुं बाधा आजाय वा अनुमानसूं बाधा आजाय, सो काहेका आगम : बहुरि जामैं सारभूत जीवका कल्याण रूप उपदेश नही, सो काहेका आगम ? बहुरि जो जीवनिका घात करनेवाला दुःखदायी होय, सो शास्त्र शस्त्र है, बुद्धिवानोनिकै आदरनेजोग्य नही है । अर जो संसारके कुमार्गकूं प्रवर्तन करावै, सो खोटा आगम है। अब गुरुका लक्षण ऐसा हैविषयाशावशातीतो निरारंभोऽपरिग्रहः ज्ञानध्यानतपोरक्तस्तपस्वी स प्रशस्यते ॥ १ ॥ For Private And Personal Use Only

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