Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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(vii) पहले पुष्पदंतने की। 'महापुराण' या 'तिमिहापुरिसगुणालंकार' (सं. त्रिषष्टिमहापुरुष-गुणालङ्कार) नामक इस महाकृति में 102 संधि हैं जिनमें से पहले सड़तीस संधि में 'आदिपुराण' और अन्य में 'उत्तरपुराण' है ।
पुष्पदंत ने कथानक के संदर्भ में जिनसेन-गुणभद्रकृत संस्कृत “त्रिषष्टिमहापुरुषगुणालङ्कार-संग्रह” (ई. सन् 898 में पूर्ण) का और कवि-परमेष्ठी की लुप्त रचना का आधर लिया है । इन विषयों में भी प्रसंग तथा सामग्री सहित कथानक का समग्र कलेवर परंपरा से रूढ होता था, ऐसे में कवि को निरूपण में नावीन्य और चारुता लाने के लिये केवल अपनी वर्णन की तथा शैली की कलात्मक क्षमता पर ही निर्भर रहना होता था । फलतः विषय कथानात्मक और पौराणिक होने के बावजुद जैन अपभ्रंश कवि उसके निरूपण में पशिष्ट संस्कृत के आलंकारिक महाकाव्य की परंपरा को अपनाते हैं । यह भी एक कारण है कि ये कवि हलकेफुल्के कथानक कलेवर को अलंकार, छन्द और पांडित्य की तड़क-भड़क से बढ़ा-चढ़ाकर सजाते है । 'रिहणेमिचरिय' में स्वयंभू हमें स्पष्ट कहता है कि काव्य-रचना करने के लिये उसे इन्द्र ने व्याकरण दिया, भरतने रस, ज्यासने विस्तार, पिंगलने छन्द, भामह और दण्डी ने अलंकार, बाणने अक्षराडम्बर, श्रीहषने निपुणत्व और चतुर्मुखने छड्डणी,, द्विपदी और ध्रुवक से मंडित पद्धडिका आदि दिये । पुष्पदंत भी परोक्ष रूप से ऐसा कहता है, कला के अन्य कुछ क्षेत्र में प्रतिष्ठित ऐसे कुछ नाम जोड़ता है और घोषणा करता है कि अपने 'महापुराण' में प्राकृतलक्षण, सफलनीति, छन्दभंगिमा, अलंकार, विविध रस तथा तत्वार्थ का निष्कर्ष मिलेगा । संस्कृत महाकाव्यों का आदर्श लेकर उसकी प्रेरणा से रचित अपभ्रंश महाकाव्यों का सामर्थ्य, सही अर्थो में वस्तु के वैचित्र्य या संविधान से ज्यादा उसके वर्णन या निरूपण में निहित है ।
___ स्वयंभू को तुलना में पुष्पदंत अलंकार की समृद्धि, छन्द-वैविध्य और व्युत्पत्ति पर विशेष निर्भर है । छन्दोभेद की विपुलता तथा संधि और कडवक की दीर्घता इस बात के सूचक हैं कि पुष्पदंत के समय तक आते आते संधिबध का स्वरूप कुछ विशेष संकुल हुआ होगा । 'महापुराण' के चौथे, बारहवे, सत्रहवें, छयालिसबे, बावनवे इत्यादि संधिओं के कुछ अंश पुष्पदंत की असामान्य कवित्वशक्ति के उत्तम उदाहरण कहे जा सकते हैं । 'महापुराण' के 69 से 79 संधि में रामायण की कथा का संक्षेप दिया गया है, 81 से 92 संधि में जैन हरिवंश है, तो अंतिम अंश में तेईसवें तथा चौबीसवें तीर्थकर पार्श्व तथा महावीर के चरित हैं ।
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