Book Title: Apbhramsa Vyakarana Hindi
Author(s): H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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हो चूका था अतः जहाँ तक कथावस्तु की बात है उसमें मौलिक कल्पना या संविधान की दृष्टि से परिवर्तन या रूपांतर की शायद ही कोई गुंजाइश थी । परंतु शैली को दृष्टि से, कथवस्तु को सजाने-सँवारने में वर्णन तथा रस निरूपण में और मनचाहे प्रेसंगों को यथेच्छ विस्तार देने में कवि को चाहे जितनी स्वतंत्रता मिलती थी। ऐसे सीमा में बद्ध होने के बावजुद स्वयंभू की कला दृष्टि ने प्रशंसनीय सिद्धि प्राप्त की है। अपनी विवेकबुद्धि का अनुसरण करते हुए वह आधारभूत सामग्री में काटछाँट करता है, उसे नया आकार देता है तो कभी निराली ही राह ग्रहण करता है।
'पउमचरिय' के चौदहवें संधि के वसंत-दृश्यों की मोहक पृष्ठभूमि पर आलेखित तादृश, गतिवान, इन्द्रियसतर्पक जलक्रीडावर्णन एक उत्कृष्ट सर्जन के रूप में पहले से ही प्रसिद्ध है । अलग-अलग युद्ध-दृश्य, अंजना उपाख्यान (संधि 1719) में के कुछ भावपूर्ण प्रसंग, रावण के अग्निदाह के चित्तहारी प्रसंग से निःसृत तीव्र विषाद (77 वाँ संधि) ऐसे ऐसे हृदयंगम खण्डों में हम स्वयंभू की कविप्रतिभा के प्रबल उन्मेष का दर्शन कर सकते हैं ।
'रिट्ठणेमिचरिय'. स्वयंभू का दूसरा महाकाव्य 'रिट्ठणेमिचरिय' (सं. अरिष्टनेमिचरित) अथवा 'हरिवंसपुराण' (सं. हरिवंशपुराण) भी प्रसिद्ध विषय को लेकर लिखा गया है । उसमें बाइसवें तीर्थकर अरिष्टनेमिका जीवनचरित्र तथा जैन परंपरानुसार कृष्ण
और पांडवों की कथा वर्णित है । उसके एकसौ बारह संघिओं का (जिस के कुल मिलाकर 1947 कडवक और 18000 बत्तीस-आक्षरिक ईकाइयों 'ग्रंथाय'-है) चार काण्ड में समावेश होता है : 'जायव' (सं. यादव), 'कुरु', 'जुज्झ' (सं. युद्ध) और 'उत्तर' । इसके संदर्भ में भी स्वयंभू के सामने पहले की कुछ आदर्श रचनायें थीं। नवों शताब्दी से पहले विदग्ध ने प्राकृत में, जिनसेन ने (ई. स. 783-84) संस्कृत में और भद्र (या दंतिभद्र ? भद्राश्व ?), गोविंद और चतुर्मुख ने अपभ्रंश में हरिवंश विषयक महाकाव्य लिखे थे। 'रट्ठिणेमिचरिय' के निन्यानबे संधि के बाद का अंश स्वयंभू के पुत्र त्रिभुवन द्वारा रचित है और आगे चलकर उसमें 16वीं शताब्दी में गोपाचल ( = ग्वालीअर) के एक अपभ्रंश कवि यश कीर्ति भट्टारकने कुछ अंश जोडे हैं।
___ स्वयंभू के वाद राम और कृष्ण-चरित पर रचित अपभ्रंश संधिबद्ध काव्यों में से कुछ का उल्लेख यहीं कर लें । ये सभी रचनायें अभी तक अप्रकाशित है। धवलने
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