Book Title: Anusandhan 2016 05 SrNo 69
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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मार्च - २०१६
उघाडता होय तेम, सलकाईथी क्रमशः घटनाओने उघाडता जईने, कथानकनो विकास करतां रहे छे. कविओ दाखवेलां अने कविने एक 'सिद्धकवि' तरीके प्रस्थापित करनारां पाटलिपुत्र नगर, स्थूलिभद्रनो जन्मोत्सव, स्थूलिभद्रनुं यौवन, कोशानुं सौन्दर्य, स्थूलिभद्र-कोशानो संवाद, ते बन्नेनी सुरतक्रीडा, पिताना मृत्युथी स्थूलिभद्रने जागेलो वैराग्य, तेमना वियोगमां तरफडती कोशानी व्यथा, चातुर्मास पधारेला स्थूलिभद्र मुनिने मोह पमाडवा माटे कोशानो उद्यम अने मुनि द्वारा अपाती हितशिक्षा व. वर्णनो एटलां सुरेख छे, एटलां सुरुचिपूर्ण छे के भावक रसतरबोळ थया वगर रही शके ज नहि.
__ कवि श्रीउदयसागरजी खरतरगच्छना पण्डित श्रीसाधुधर्मना शिष्य श्रीसहजरत्नजीना शिष्य छे. 'जैन गुर्जर कविओ'मां तेमणे रचेला लघुक्षेत्रसमासबालावबोध (र.सं. १६७६) विशे नोंध मळे छे. प्रस्तुत कृति त्यां नोंधाई नथी. आनी रचना तेमणे सं. १६६६ना आसो शुदि दशमना दिवसे करी छे. कडी ६६ अने १४७मां कविओ पोतानो नामोल्लेख को छे. श्रीजिनचन्द्रसूरिजीना राज्यमा प्रस्तुत रचना थई छे. (कडी १४५). कडी १४३मां आवता "सहजरतन्न कहइं सुविचारी" ए उल्लेख उपरथी कर्ताना गुरु श्रीसहजरत्नजीनो पण काव्यरचनामां फाळो होय तेवो सङ्केत मळे छे.
सम्पादनमा उपयुक्त सुवाच्य अने शुद्ध वाचना धरावी ५ पानांनी प्रत पूज्यपाद गुरुभगवन्त श्रीविजयशीलचन्द्रसूरि महाराजना अङ्गत सङ्ग्रहनी छे. प्रत द्वीपनगर(-दीव)मां मरघादे व. श्राविकोना वांचन माटे कर्ताना गुरु श्रीसहजरत्नजी द्वारा लखाई छे. .
॥ [६०|४ नमो वीतरागाय ||
चंद्र-किरण जिम निरमली, सरसति भगवति वंदि । थूलिभद्र गुण वर्णवू, चंदाइणि सुभ छंदि ॥१॥ इणि जगि ए सम को नही, सील-रयण-गुण-धार । मदन-मान मोडी करी, राख्यउ जस-विस्तार ॥२॥ कुण देसई कुण गामि हुअ, कवण कुलई अवतार । किणि परि संयम आदर्यु, ते सुणिज्यो सुविचार ॥३॥

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