Book Title: Anusandhan 2016 05 SrNo 69
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 174
________________ मार्च - २०१६ १६७ स्वत: पक्षनुं मण्डन थयुं छे, अने त्यारबाद परतःप्रामाण्यवादी बौद्धो तरफथी क्रमशः ओ त्रणे पक्षनुं खण्डन थयुं छे. परन्तु अत्रे विद्यार्थीओनी सगवड माटे प्रथम प्रामाण्यनी उत्पत्तिमां स्वतस्त्वनुं मण्डन-खण्डन, पछी ज्ञप्तिमां अने त्यारबाद कार्यमां - ओ रीते क्रम राख्यो छे. वृत्तिगत चर्चाने सक्षेपमां जोइओ तो - प्रामाण्य- उत्पत्तिमां स्वतस्त्व : (-मीमांसक) प्रामाण्यने पोतानी उत्पत्तिमां ज्ञानसामान्यनां कारणो सिवाय गुणोनी अपेक्षा छे - ओ वात बराबर नथी. केमके गुणोनुं अस्तित्व ज साबित करवू शक्य नथी. प्रत्यक्षथी तो मे गुणोने जाणवा शक्य नथी. कारण के ओ गुणोनुं आश्रयस्थान इन्द्रिय पोते अतीन्द्रिय वस्तु छे. अने अतीन्द्रिय पदार्थ के तेमां रहेला गुणो प्रत्यक्षनो विषय बनी शके नहि. ओ ज रीते प्रत्यक्षथी जे वस्तु जणाई होय तेनुं ज अनुमान थई शके ओवो नियम होवाथी गुणो अनुमानथी पण न जाणी शकाय. वळी, बौद्ध मते अनुमान त्रण प्रकारनां ज होइ शके : १. स्वभावहेतुजन्य, २. कार्यहेतुप्रभव, ३. अनुपलब्धिहेतुसम्भव. तेमां स्वभावहेतु तो प्रत्यक्षथी गृहीत अर्थमां व्यवहार प्रवर्तावे छे. जेम के आ शिशपा छे, माटे वृक्ष छे. आम, प्रत्यक्षथी देखाता शिंशपामां 'वृक्ष' तरीकेनो व्यवहार स्वभावहेतु प्रवर्तावे छे. 'गुण' तरीके सम्मत पदार्थो तो प्रत्यक्षथी जणाता नथी, तो स्वभावहेतुथी जन्य अनुमान त्यां केवी रीते काम लागे ? ओ ज रीते 'गुण'थी जन्य कोई कार्य पण सिद्ध नथी के जेना बळे कार्यहेतुजन्य अनुमान प्रवर्ते अने गुणोने कारण तरीके सिद्ध करी आपे. अनुपलब्धि हेतु तो आमे अभावसाधक छे. तेथी ते पण गुणोने सिद्ध करवा काम न लागे.' आ सिवाय कोई चोथा प्रकारअनुमान तो तमे मामतां नथी, तेथी अनुमानप्रमाणथी गुणो सिद्ध करवा असम्भव छे. अने बौद्ध मते प्रत्यक्ष अने अनुमान - बे ज प्रमाण स्वीकार्य होवाथी, ओ बेथी असिद्ध-अगृहीत ओवा गुणो आपोआप 'असत्' बने छे. १. वृत्तिमां आ त्रणे अनुमाननी चर्चा सहेज जुदा सन्दर्भे छे. पण विद्यार्थीओनी सरळता खातर अत्रे आ रीते वर्णवी छे.

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