Book Title: Anusandhan 2016 05 SrNo 69
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 188
________________ मार्च - २०१६ १८१ देवगुप्तसूरिजीना गुणोने जोईने, तेमना गुरु श्रीसिद्धसूरिजीओ तेमने पोतानी पाटे स्थापवा माटे, उपाध्यायपद आपीने लोकोमा प्रसिद्ध कर्या. आ देवगुप्तसूरिजीनी आचार्यपदवी थई त्यारबाद तेमनी आज्ञाथी तेमना शिष्य उपाध्याय यशोदेवे आ वृत्तिनो आरम्भ कर्यो. अने देवगुप्तसूरिजीना काळधर्म बाद, तेमना शिष्य अने पोताना गुरुभाई श्रीसिद्धसूरिजीना (देवगुप्तसूरिजीना गुरु श्रीसिद्धसूरिजीना प्रशिष्य) कहेवाथी आ वृत्ति पूर्ण करी. धनदेव जेमनुं आद्य नाम छे अवा उपाध्याय यशोदेवे आ वृत्ति रची छे. आ तात्पर्यमांथी नीचेनी हकीकतो फलित थाय छ : १. श्रीसिद्धसूरिजी पोतानी पाटे देवगुप्तसूरिजीने स्थापन करवा इच्छता हता, उपाध्याय यशोदेवने नहि. तेमज तेओओ ते माटे देवगुप्तसूरिजीने ज उपाध्यायपदवी आपी हती, सम्पादकश्रीओ कहे छे तेम यशोदेवने नहि. वास्तवमा श्रीसिद्धसूरि अने यशोदेव वच्चे काळy अन्तर होवाथी बन्ने वच्चे पदवीप्रदाननो व्यवहार थवो भाग्ये ज सम्भवित छे. २. देवगुप्तसूरिने आचार्यपदवी कोणे आपी ते आमां जणावायुं नथी. ओ ज रीते यशोदेवने उपाध्यायपदवी कोना हाथे मळी ते पण नोंधायुं नथी. ३. प्रशस्तिमां जे काळधर्मनी नोंध छे ते देवगुप्तसूरिजीने अंगे छे, सिद्धसूरिजीने अंगे नहि. तेथी सम्पादकश्रीओ कहे छे तेम सिद्धसूरिजीनो काळधर्म थवाथी यशोदेवनी आचार्यपदवी अटकी पडी एवो कोई सन्दर्भ अत्रे छे ज नहि. कमसे कम यशोदेव उपाध्याये तो एवं नथी ज कह्यु. उपाध्याय यशोदेवे आ बृहद्वृत्ति सिवाय सं. ११७८मां चन्द्रप्रभचरित्र (प्राकृत) रच्युं हतुं तेमज पोताना गुरुभाई सिद्धसूरिजीने शास्त्रार्थ पण शीखव्या हता, तेवी नोंध जैन साहित्यनो सङ्क्षिप्त इतिहास (मोहनलाल दलीचंद देसाई), पारा-३३१मां नोंधाई छे. त्यां तेमनुं नाम 'यशोदेवसूरि' जणावायुं छे. पण ते उल्लेख वास्तविक होय तेवी शक्यता ओछी छे, केम के सं. ११९२मां तेमना गुरुभाई सिद्धसूरिजीओ रचेली क्षेत्रसमासवृत्तिमां पण तेमने 'उपाध्याय' ज जणावाया छे. * * *

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