Book Title: Anusandhan 2016 05 SrNo 69
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 185
________________ १७८ अनुसन्धान-६९ (के जेथी भविष्यमा आचार्यपद आपी शकाय); परन्तु आचार्यपद आपतां पूर्वे ज सिद्धसूरिजी कालधर्म पामतां, यशोदेव उपाध्यायपदे ज रह्या. आ बधुं यशोदेव उपाध्याये स्वयं आ बृहवृत्तिना अन्तभागे आलेखेली पट्टावलीमां जणाव्युं छे.") हमणां नवपदप्रकरण बृहद्वृत्ति साथे श्रीयोगतिलकसूरिजी म.ना हाथे पुनः सम्पादित थईने वीरशासन नामनी संस्था द्वारा प्रकाशित थयुं छे.' प्रकाशननी सम्पादकीय भूमिकामां जणावायुं छे के "या च बृहद्वृत्तिरस्ति सा तेषामेव शिष्यैः श्रीमद्यशोदेवोपाध्यायविरचिता । तेभ्यश्चोपाध्यायपदवी स्वप्रगुरुभिः श्रीसिद्धसूरिभिरेव दत्ता । ते च प्रगुरव आचार्यपदवीमपि दातुकामा आसन्, किन्तु अन्तरैव तेषां कालधर्मो जातः । (देवगुप्तसूरिजीना शिष्य यशोदेव उपाध्याये बृहवृत्ति रची छे. तेमने उपाध्यायपदवी तेमना दादागुरु सिद्धसूरिजीओ ज आपी हती. ते दादागुरुने तो यशोदेव उपाध्यायने आचार्यपद पण आपq हतुं, पण ते थाय ते पूर्वे ज तेमनो काळधर्म थई गयो.)" स्पष्ट छे के पुनःसम्पादक अत्रे पूर्वसम्पादनगत प्रस्तावनाने ज अनुसर्या छे. __बन्ने सम्पादकश्रीओनां विधानो परथी नीचेना निष्कर्षो नीकळे छ : १. यशोदेव उपाध्यायने आचार्यपद आपवानी तेमना दादागुरु सिद्धसूरिजीने इच्छा हती. २. आ इच्छाने पार पाडवा तेओओ यशोदेवने आचार्यपद पूर्वेर्नु उपाध्यायपद आप्यु हतुं. आम यशोदेवने उपाध्यायपद तेमना गुरु देवगुप्तसूरिजी पासेथी नहि, पण दादागुरु सिद्धसूरिजीना हाथे मळ्युं हतुं... ३. उपाध्यायपद आप्या बाद सिद्धसूरिजी काळ करी जतां, यशोदेव उपाध्यायपदे ज रह्या. आनो अर्थ अवो थई शके के सिद्धसूरिजीओ यशोदेवमां आचार्यपदनी लायकात जोया छतां, तेमना काळधर्म बाद देवगुप्तसूरिजी के अन्य ज्येष्ठ आचार्य पासे यशोदेवने आचार्यपद मळ्युं नहि. ४. पोते उपाध्याय होवा छतां पोतानामां आचार्यपदनी योग्यता छे ओ सहितनी बधी वातो यशोदेव उपाध्याये पोते लखी छे. * उपदेशसाहित्यमाला - भाग १

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