Book Title: Anusandhan 2016 05 SrNo 69
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान-६९
ओ प्रवृत्तिनी सफलताथी ज्ञानमां प्रामाण्यनो अटले के अर्थनो यथावत् बोध कराववानी शक्तिनो निश्चय थाय छे. अने आ शक्तिनिश्चयनी अपेक्षाओ प्रमाण स्वकार्य - यथावस्थित बोध करावी शके छे. आ अपेक्षा राखवी ओ ज तेनुं परतस्त्व छे.
सन्मतितर्कवृत्तिगत प्रामाण्यवादनी चर्चा अत्रे पूर्ण थाय छे. विद्यार्थीओ माटे प्रारम्भिक स्तरे जरूरी बने जेटली ज दलीलो अत्रे रजू करी छे. मूळ चर्चामां बन्ने पक्षोनी हजु बीजी घणी दलीलो छे, ते सरळता अने सक्षिप्ततानी साचवणी खातर अत्रे रजू नथी करी. जिज्ञासुओने मूळ चर्चा जोवा अनुरोध छे.
प्रामाण्यवादनी आ चर्चा-विचारणामां अर्थघटननी, दृष्टिबिन्दुनी, सङ्कलननी के अन्य कोई बाबतनी त्रुटि होवानी पूरेपूरी सम्भावना छे ज. ते सूचवीने आ लेखकने उपकृत करवा विद्वज्जनोने नम्र विनन्ति.
आ लखाणनां टिप्पणोमां केटलाक ग्रन्थोनी मूळ पङ्क्तिओ नोंधवामां न्यायकोश (-भीमाचार्य झलकीकर, चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन)नी सहायता मळेल छे.

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