Book Title: Anusandhan 2016 05 SrNo 69
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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मार्च - २०१६
१७७
ट्रॅकनोंध : नवपदप्रकरण-बृहद्वृत्तिनी प्रशस्तिना अर्थघटन अंगे
- मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय विक्रमना ११मा सैकामां थयेला श्रीदेवगुप्तसूरिजीओ श्रीनवपदप्रकरणनी रचना करी छे. मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, श्रावकना १२ व्रत तथा संलेखना विशे नव द्वारोथी अत्रे विचारणा करवामां आवी छे, तेथी तेनुं 'नवपदप्रकरण' अवं नाम छे. आ प्रकरण पर ग्रन्थकारे स्वयं एक वृत्ति रची छे.
आ प्रकरण पर ग्रन्थकारना ज शिष्य श्रीयशोदेव उपाध्याये ग्रन्थकारनी स्वोपज्ञवृत्तिना आधारे बृहवृत्ति रचेली छे. जे पूज्यपाद श्रीसागरजी महाराज द्वारा सम्पादित थईने, देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार संस्था तरफथी सं. १९८३मां प्रकाशित थई छे.
प्रस्तुत प्रकाशननी प्रस्तावनामां श्रीसागरजी महाराजे आ प्रमाणे विधान कर्यु छ :. "...श्रीदेवगुप्तसूरीणां पादोपजीविनः श्रीमन्तो यशोदेवोपाध्याया धनदेवेतिप्रागभिधाना सविस्तरामेनां वृत्ति विस्तृतकथायुतां चक्रुः । ...प्रस्तुतां च वृत्तिमुपाध्यायपदमाश्रिताश्चक्रुः । परं विशेषोऽत्रैतावान् यदुत नैते उपाध्यायपदव्या श्रीमद्भिर्देवगुप्तसूरिभिर्विभूषिता किन्तु श्रीमद्देवगुप्तसूरिगुरुभिः सिद्धसूरिभिः । तदपि उपाध्यायपदं सूरिपदेऽभिषेक्तुमनोभिरेव सिद्धसूरिभिर्दत्तं, परं ते परलोकमलंचक्रुरन्तरैवेति स्थिता एते यशोदेवा उपाध्यायपदे एव । सर्वमेतत् स्वयमेव पट्टावल्यां प्रस्तुतग्रन्थप्रान्त्यभागे स्पष्टमेव जगदुः ।"
("श्रीदेवगुप्तसूरिजीना शिष्य श्रीयशोदेव उपाध्याय, जेमर्नु पूर्वावस्थामां 'धनदेव' अq नाम हतुं तेमणे, विस्तृत कथावाळी आ बृहवृत्ति रची छे. तेमणे आ वृत्ति उपाध्यायपदना पर्यायमां रची छे. परन्तु आमां विशेष छे के तेमने उपाध्यायपद तेमना गुरु देवगुप्तसूरिजीओ नहि, पण तेमना दादागुरु सिद्धसूरिजीओ आप्युं हतुं. वास्तवमां सिद्धसूरिजीनी इच्छा तो यशोदेव मुनिने आचार्यपट आपवानी ज हती, अने ते माटे ज तेओओ तेमने उपाध्याय पद तुं

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