Book Title: Anusandhan 2016 05 SrNo 69
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 179
________________ १७२ अनुसन्धान-६९ माटे, प्रामाण्य- स्वतः ग्रहण स्वीकारवू ज वाजबी छे. प्रामाण्य ज्ञप्तिमां परतस्त्व : (बौद्ध) ___प्रामाण्यनुं ग्रहण चोक्कस देश-कालमां ज थाय छे, तेथी ते वगर निमित्ते तो न ज होय, अनुं कोईक निमित्त तो स्वीकारेवु ज पडे. आ निमित्त 'कारणगुणोनुं ज्ञान' तो न ज होय. केम के ओ ज्ञान संवादज्ञान वगर थर्बु शक्य नथी. अने संवादज्ञानथी कारण गुणोनुं ज्ञान जन्मे, अने ओ ज्ञानथी प्रामाण्यनुं ज्ञान थाय - ओम मानवा करतां तो संवादज्ञानथी प्रामाण्यनुं ज्ञान ज स्वीकारी लेवू वधारे सारुं छे. वास्तवमां ज्ञानगत प्रामाण्यनो अर्थ ज छे के ते संवादने उत्पन्न करवानी योग्यता धरावे छे. आ योग्यतानो निश्चय प्रवृत्ति कर्या वगर थई शके नहि, केम के नियम अवो छे के "कार्यने जोया विना कारणमां ओ कार्य करवानी शक्ति छे ओ निश्चित थई शकतुं नथी." माटे संवादज्ञानथी पूर्वज्ञाननी संवादजननशक्ति = प्रामाण्य निश्चित थाय छे एम स्वीकारवू जोइओ. आ संवादज्ञानमां प्रामाण्यना निश्चय माटे कोई बीजा ज्ञाननी जरूर पडती नथी. केम के ओ स्वयं संवादस्वरूप छे. अना द्वारा पोताना विषय, संवेदन थाय ओ ज अनुं प्रामाण्य छे. अने आ संवादने उत्पन्न करवानी शक्ति पहेला ज्ञानमां हती अq नक्की थाय ते पहेला ज्ञान- प्रामाण्य छे. जेम के कोई माणसने दूरथी 'त्यां अग्नि छे' अq ज्ञान थयु. आ ज्ञानथी ओ ते प्रदेशमा गयो अने अग्निविषयक दाह-पाक व. प्रवृत्ति करी. आ प्रवृत्ति पोते अग्निना अनुभवरूप छे, तेथी तेना प्रामाण्य विशे शङ्का ऊठवानो कोई सवाल ज नथी. अने आ संवादात्मक प्रवृत्ति पूर्वना प्रवर्तक ज्ञानना प्रामाण्यनो पण निश्चय करावी आपे छे. ट्रॅकमां, ज्यां प्रवर्तकज्ञान अने अर्थक्रियाज्ञान संवादी बने छे त्यां आपोआप बन्ने ज्ञानना प्रामाण्यनो निश्चय थतो होय छे. माटे 'संवादज्ञानना प्रामाण्यनो निश्चय कई रीते ?' ओ प्रश्न ज अस्थाने छे. केम के जो संवादज्ञान = अर्थक्रियाज्ञान पण अप्रमाणभूत होई शके अम मानो तो तो तमे शेना बळे पदार्थनी व्यवस्था गोठवशो ? अर्थक्रियाज्ञानरूप फळ उत्पन्न करवू ओ ज ज्ञानगत प्रामाण्य छे. हवे

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